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विधानसभा चुनाव से पहले Janata Dal (United) को भारी झटका

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बिहार के औरंगाबाद जिले से पार्टी संगठन को एक बड़ा आघात पहुँचा है — विधानसभा चुनाव से पहले जदयू की पूरी जिला कमेटी ने अपने पदों से सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया है।
इस घटना ने न सिर्फ उस जिले में जदयू के आंतरिक संतुलन को हिला दिया है बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव-2025 के संदर्भ में संगठनात्मक मोर्चे पर बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

घटना की शुरुआत औरंगाबाद जिले में तब हुई जब जदयू ने रफीगंज विधानसभा सीट से ऐसे व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया, जो पार्टी का प्राथमिक सदस्य तक नहीं है, इस बात को पूर्व जिलाध्यक्ष और पूर्व विधायक Ashok Kumar Singh ने प्रेस वार्ता में उजागर किया। 
उन्होंने कहा कि “अगर पार्टी ने हमारे पुराने कार्यकर्ता, पुरानी प्राथमिक सदस्यता रखने वाले या गठबंधन की अन्य घटक दलों के नेताओं को टिकट दिया होता तो हम कार्यकर्ता नाराज नहीं होते”।

इस्तीफों के बाद जदयू प्रदेश ने तत्काल कदम उठाते हुए पूर्व जिलाध्यक्ष Dharmendra Kumar Singh को कार्यकारी जिलाध्यक्ष नियुक्त किया है ताकि संगठन में फिर से नियंत्रण स्थापित किया जा सके।
पार्टी अध्यक्षात्मक स्तर पर यह संकेत माना जा रहा है कि चुनावों से पूर्व संगठन-दुर्गम क्षेत्रों में कहीं न कहीं असंतुष्टि और वफादारी की दरारें उभर रही हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि इस प्रकार की घटना चुनाव-प्रशासन एवं संगठनात्मक दृढ़ता दोनों के लिए “हताशा का संकेत” हो सकती है। जिला कमेटी का एक साथ इस्तीफा यह बताता है कि कार्यकर्ता-श्रमिकों को टिकट-प्रक्रिया, निष्पादन या संवाद में पर्याप्त भरोसा नहीं रहा होगा।
यह स्थिति पार्टी की छवि, बूथ-सक्रियता, तथा लोक-सम्बन्धन के दृष्टिकोण से संवेदनशील हो सकती है, खासकर तब जब विपक्ष इस तरह की घटनाओं को राजनीतिक हवा देने का अवसर नहीं छोड़ता।

राजनीतिक पृष्ठभूमि में देखें तो, औरंगाबाद जिला बिहार की महत्वपूर्ण राजनीतिक क्षेत्र है जहाँ जनसांख्यिकीय विविधता, जातीय समीकरण और गठबंधन-रणनीति प्रमुख भूमिका निभाती है। ऐसे में वहीं पर संगठन-संकट उभरना जदयू के लिए दोहरी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है:

  1. स्थानीय स्तर पर संगठनात्मक एकता बहाल करना

  2. आगामी चुनाव में माहौल को नियंत्रण में रखना, विशेषकर जब विपक्ष-मीडिया इस तरह के घटनाक्रम को बढ़ावा देने के लिए तत्पर हों।

इसके अलावा, इस्तीफों के पीछे ticket-distribution (टिकट बंटवारे) की नाराजगी, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, संवादहीनता जैसी शिकायतें उजागर हुई हैं। पूर्व जिलाध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने कहा कि “जिस व्यक्ति ने पार्टी का झंडा फूंका और मुख्यमंत्री को गाली दी, वही आज प्रत्याशी बना दिया गया” — इस प्रकार की पैघ आरोप-प्रत्यारोप ने संगठन में खिंचाव को और गहरा कर दिया है।

समग्र रूप से देखा जाए तो, यह मामला समय-सापेक्ष है क्योंकि चुनाव से पहले संगठन-सामर्थ्य, कार्यकर्ता-मनोबल और प्रशासन-रूपरेखा जैसी चीजें निर्णायक भूमिका निभाती हैं। जदयू के लिए यह झटका सिर्फ औरंगाबाद तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि उसी का असर अन्य जिलों और संगठन की समग्र तैयारियों पर भी पड़ सकता है।

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