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अंतिम सांस तक पीएम मोदी के साथ रहूंगा

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बिहार की सियासी बिसात पर आज फिर हलचल मची है, जब NDA गठबंधन के घटक और HAM (हिंदुस्‍तान अवाम मोर्चा) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने एक मजबूत बयान देकर गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की चुनौतियों पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी। मांझी ने कहा है कि वे “अपनी अंतिम सांस तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ” रहेंगे।

विधानसभा चुनाव से पहले NDA के सहयोगियों में सीटों का बंटवारा पिछले कुछ दिनों से विवादित विषय बना हुआ है। दिल्ली में हुई लगभग आठ घंटे तक चली मंथन बैठक में अलग-अलग धड़े अपनी-अपनी दावेदारी लेकर सामने आए। मांझी की नाराज़गी भी इसी फॉर्मूले को लेकर सुर्खियों में थी।

मांझी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा —

“अभी मैं पटना निकल रहा हूँ … वैसे एक बात बता दूँ … मैं जीतन राम मांझी अपनी अंतिम सांस तक प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ रहूंगा। बिहार में बहार होगी, नीतीश संग मोदी जी की सरकार होगी।”

उनके इस बयान के अनुसार, उन्होंने पहले भी इस विश्वास को जाहिर किया था और अब दोहराया। इस दावे से यह स्पष्ट है कि मांझी और उनकी पार्टी HAM NDA के भीतर अपना महत्व बनाए रखना चाहते हैं और गठबंधन में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं।

सूत्रों के मुताबिक, HAM को कुल 6 सीटें देने की सहमति बनी है, साथ ही भविष्य में एक MLC सीट के लिए भी प्रस्ताव रखा गया है। इस तरह की सौदाबाजी गठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखने की कोशिश है।

इस बीच, जनता दल (यूनाइटेड) — JDU — ने भी अपनी रणनीति को पुख्ता कर लिया है। पार्टी ने वैसे तो उन सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जहां वह चुनाव लड़ेगी, लेकिन साथ ही यह भी संकेत दिया गया है कि चार मौजूदा विधायकों की जगह नए चेहरे लाए जा सकते हैं, खासकर उनकी उन सीटों पर जहां पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है।

चुनावी राजनीति में ऐसे समय पर जब हर सीट महत्वपूर्ण है, मांझी का यह दांव यह दर्शाता है कि HAM अपनी भाजपा–JDU–अन्य NDA सहयोगी दलों के बीच सियासी दबाव में बैलेंस बिठाए रखना चाहता है। यह सुनिश्चित करना चाहता है कि उसे सिर्फ भावनात्मक वचन नहीं बल्कि ठोस राजनीतिक हिस्सेदारी मिले। इस बयान का सियासी महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह न केवल HAM की स्थिति को मजबूत करता है बल्कि यह अन्य घटकों को यह संकेत देता है कि HAM अपनी मांगों के लिए पीछे नहीं हटेगा।

बिहार में आने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा इस तरह के गठबंधन-सम्बंधी फैसलों से तय होगी। मांझी का यह दृढ़ रुख इस मायने में अहम है कि वह संभावित मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे भरोसेमंद साथी हैं — वह न केवल वादे करते हैं बल्कि उन्हें निभाने का आश्वासन देते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे अन्य NDA घटक दल इस दांव का जवाब देते हैं, और सीटों के लाभ–हानि की काट कैसे तय होती है।

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