
दिल्ली में आगामी कांवड़ यात्रा को देखते हुए धार्मिक माहौल को शांतिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण बनाए रखने के लिए मांस और शराब की दुकानों को अस्थायी रूप से बंद करने की अपील की जा रही है। कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होकर 23 जुलाई तक चलेगी।
दिल्ली भाजपा विधायक और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGMC) के सदस्य तरविंदर सिंह मरवाह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अनुरोध किया है कि कांवड़ यात्रा के मार्ग पर आने वाली सभी मांस और शराब की दुकानें इस अवधि में बंद कराई जाएं। उनका तर्क है कि ऐसा करने से धार्मिक आस्था का सम्मान होगा और यात्रियों को किसी तरह की असुविधा या आपत्ति जनक दृश्य से बचाया जा सकेगा।
मरवाह का यह पत्र आते ही इस पर राजनीतिक हलकों में चर्चा शुरू हो गई। दिल्ली के पर्यटन मंत्री कपिल मिश्रा और हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने भी इस अपील का समर्थन किया है। इनका कहना है कि यात्रा मार्ग की पवित्रता बनाए रखना जरूरी है और इसके लिए सामाजिक सहयोग चाहिए।
दिल्ली के मेयर राजा इकबाल सिंह ने भी दुकानदारों से व्यक्तिगत तौर पर अपील की है। उन्होंने कहा कि व्यापारियों को चाहिए कि कांवड़ यात्रा के दौरान नैतिक जिम्मेदारी निभाएं और मांस की दुकानें बंद रखें, ताकि कोई धार्मिक भावना आहत न हो।
हालांकि इस अपील का विरोध भी हुआ है। ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने इसे ‘तुग़लकी फरमान’ कहा है। उन्होंने कहा कि एक धर्म के मानने वालों की आस्था के कारण दूसरे धर्म के लोगों की रोज़ी-रोटी पर रोक लगाना संविधान के खिलाफ है। रशीदी ने यह भी तंज किया कि अगर सरकार इतनी ही चिंतित है तो दुकानदारों को हर दिन ₹5,000 मुआवजा दे।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पहले से ही कांवड़ यात्रा के दौरान कई शहरों में मांस की दुकानों को बंद रखने का आदेश दिया जाता रहा है। अब दिल्ली में भी इसी तरह की मांग उठी है। प्रशासन ने अभी तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया है, लेकिन सभी पक्षों की अपील और विरोध के चलते यह मुद्दा गरमाया हुआ है।
कांवड़ यात्रा के दौरान हर साल लाखों श्रद्धालु हरिद्वार, गंगोत्री आदि से गंगाजल लाकर अपने-अपने शिवालयों में चढ़ाते हैं। यात्रा मार्ग में श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्थाएं, सड़क किनारे कैंप, मेडिकल स्टॉल और पुलिस सुरक्षा भी लगाई जाती है। मांस और शराब की दुकानों को बंद रखने की मांग को इसी धार्मिक पवित्रता बनाए रखने के संदर्भ में देखा जा रहा है।