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कर्नाटक कांग्रेस में फिर सत्ता संघर्ष तेज़

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कर्नाटक में कांग्रेस राज्य इकाई में पावर-साझाकरण (power-sharing) को लेकर चल रही गुटबाज़ी फिर एक बार बड़े राजनीतिक संकट का रूप ले रही है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार के बीच सत्ता की री-डिस्ट्रिब्यूशन की अटकलें तेज़ हो गई हैं, जिससे पार्टी के अंदरूनी समीकरण और हाईकमान में भी भूचाल मचा हुआ है।

राज्य में इन चर्चाओं को हवा मिली है क्योंकि कुछ विधायकों ने खुलकर मांग की है कि शिवकुमार को भी मुख्यमंत्री बनने का मौका मिले। एक Aaj Tak रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में दोनों कैंपों के बीच लगातार बैठकों का दौर चल रहा है, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने फिलहाल किसी भी पावर-शेयरिंग मॉडल को आधिकारिक मान्यता देने से इनकार किया है।

कई सूत्रों की माने तो तीन प्रमुख पावर-शेयरिंग फॉर्मूले सामने आए हैं: पहला, सिद्धारमैया को पहले कुछ साल मुख्यमंत्री बनाए रखा जाए और बाद में शिवकुमार को मौका दिया जाए; दूसरा, एक मुख्यमंत्री और तीन उपमुख्यमंत्री का मॉडल हो — ताकि विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके; और तीसरा, शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया जाए और बाद में बढ़ी भूमिका मिले।

हालाँकि, डी.के. शिवकुमार ने इन अटकलों का खंडन करते हुए कहा है कि सिद्धारमैया पूरे पांच साल के कार्यकाल को पूरा करेंगे।  उनकी यह बात उन खबरों के बीच आई है, जिनमें कहा जा रहा था कि पार्टी सूत्रों ने नवंबर में मंत्री-परिवर्तन (cabinet reshuffle) के संकेत दिए हैं।

राजनीति में यह टकराव सिर्फ पदों की नहीं, बल्कि कांग्रेस के भीतर सामुदायिक और नेतृत्व-संबंधी गहराई को भी दर्शाता है। वोक्कालिगा समुदाय के एक धार्मिक नेता ने तो सिद्धारमैया से ये अपील तक की है कि वे सत्ता शिवकुमार को सौंप दें — जो कि उनके समुदाय के लिए राजनीतिक महत्व भी रखता है। इसके अलावा, विश्लेषक यह मानते हैं कि शिवकुमार की बढ़ती बेचैनी और उनकी महत्वाकांक्षा पार्टी के अंदरूनी विवादों को और हवा दे रही है।

इस सब के बीच, कांग्रेस हाईकमान की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण साबित हो रही है। उन्हें यह संतुलन बनाए रखना है कि कहीं बदलाव के नाम पर पार्टी में दरार न पड़े, लेकिन साथ ही वे स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी नजरअंदाज नहीं कर सकें। अगर यह तनाव और बढ़ा, तो कैबिनेट फेरबदल या सत्ता-साझाकरण जैसे बड़े कदम का रास्ता खुल सकता है — और यह कर्नाटक की कांग्रेस की स्थिरता के लिए एक बड़ा परीक्षण होगा।

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