
कर्नाटक विधानसभा के बेलगावी सत्र में हेट स्पीच और हेट क्राइम्स प्रिवेंशन बिल, 2025 को तीव्र विवाद और विपक्षी विरोध के बीच पारित कर दिया गया है। इस बिल का मुख्य उद्देश्य राज्य में नफरत फैलाने वाले भाषणों और गतिविधियों को क़ानूनी रूप से रोकना बताया गया है, लेकिन विपक्षी शिविर खासकर भाजपा द्वारा इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का हथियार मानते हुए कड़ी आलोचना की जा रही है।
बिल के अनुसार, किसी व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ ऐसा कोई भी बयान, प्रचार या संदेश जो समाज में वैमनस्य, नफरत या असामंजस्य फैलाने की नीयत से दिया गया हो, वह हेट स्पीच की श्रेणी में आएगा। इस तरह के अपराध को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना गया है और इसके लिए पहली बार दोषी पाए जाने पर न्यूनतम एक वर्ष से लेकर अधिकतम सात साल तक की जेल और ₹50,000 का जुर्माना लगाया जा सकता है। वहीं, दोबारा अपराध करने पर यह सज़ा दो से दस साल तक जेल तथा ₹1 लाख तक का जुर्माना भी हो सकता है। इसके अलावा, पीड़ितों को क्षति के आधार पर मुआवजा देने का प्रावधान भी रखा गया है।
क़ानून न सिर्फ व्यक्तियों बल्कि संगठनों और संस्थाओं को भी जवाबदेह ठहराता है, जिसमें यदि किसी संगठन के प्रतिनिधि या पदाधिकारी की गतिविधियों से हेट स्पीच अपराध होता है तो वे भी दोषी माने जाएंगे। साथ ही, सरकार के नामित अधिकारी को अधिकार दिया गया है कि वे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स या सर्विस प्रोवाइडर्स को हेट स्पीच सामग्री हटाने या ब्लॉक करने का निर्देश दे सकें, जिससे ऑनलाइन नफरत-भड़काऊ संदेशों पर भी नियंत्रण किया जा सके।
बिल को लेकर विधानसभा में भारी हंगामा और बहस भी हुई, जहां भाजपा के विधायक इसे स्वतंत्रता पर हमला और विरोधी आवाज़ों को दबाने का प्रयास बता रहे हैं। भाजपा के नेताओं का दावा है कि इस बिल के ज़रिये सरकार आसानी से आलोचनात्मक टिप्पणियों, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और मीडिया पर कार्रवाई कर सकती है, खासकर जब वे सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की नीतिगत आलोचना करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ है और इससे भाजपा तथा हिंदुओं की आवाज़ें दब सकती हैं, जैसा कि विधानसभा बहसों में सामने आया।
दूसरी ओर, कर्नाटक के गृह मंत्री ने इसे राज्य में शांति और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया है, और बताया कि हाल के समय में बढ़ती घृणा-भाषण से जलती विवादित घटनाएँ और हिंसा ने यह कानून लाने की ज़रूरत को मजबूर किया है। उन्होंने कहा कि यह बिल सभी समुदायों सहित देश के कमजोर वर्गों को भी सुरक्षा प्रदान करेगा और समाज में घृणा फैलाने वाले तत्वों की गतिविधियों पर रोक लगाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बिल कर्नाटक में पहली बार इस तरह का व्यापक क़ानून है, जो भाषणों, प्रकाशनों और डिजिटल संचार के माध्यम से फैलने वाली नफरत को रोकने का प्रयास करता है, लेकिन इसके प्रभाव और व्यवहार में लागू होने पर बहसें जारी रहने की संभावना है। विपक्ष यह भी चेतावनी दे रहा है कि यदि इस तरह के कानून को राज्यों के स्तर पर अन्यत्र भी अपनाया गया, तो यह भाषण की आज़ादी पर एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय precedent बन सकता है।



