
आंध्र प्रदेश के Kurnool जिले में बस-मोटर साइकिल टकराव के बाद आग भड़की
आज तड़के आंध्र प्रदेश के Kurnool जिले के चिन्ना टेकुरु गाँव के पास नदी-हाइवे पर एक बेहद भयावह सड़क दुर्घटना हुई, जिसमें एक निजी यात्री बस और एक मोटर साइकल की टक्कर के बाद बस में अचानक आग लग गई। इस हादसे में लगभग 20 लोग जली भस्म हो गए हैं और कई अन्य गंभीर रूप से झुलसे हैं।
घटना के शनिवार-सुबह के करीब 3-4 बजे के बीच हुई जब यह बस Kaveri Travels के नाम से चल रही थी और तेलंगाना के हैदराबाद से कर्नाटक के बेंगलुरु जा रही थी। बताया गया है कि बस के पिछले हिस्से में मोटर साइकल ने टक्कर मारी, वह बस के नीचे फंस गई, जिससे चिंगारियाँ फैलीं और तुरंत आसपास के इंधन टैंक में आग लगी।
टक्कर के बाद बस का पिछला मुख्य द्वार पहले जाम हो गया था, जिससे यात्रियों को बाहर निकलने में भारी परेशानी हुई। कई लोग जागे थे और खिड़कियों को तोड़कर बाहर निकले, लेकिन अधिकतर सो रहे थे और अचानक उठने पर सामने आग का सामना करना पड़ा। इस कारण मृतकों की संख्या तेजी से बढ़ी।
स्थानीय पुलिस के अनुसार, मौके पर फोरेंसिक-टीम बुलाई गई है, जली हुई बस का मुआयना किया जा रहा है और मृतकों की पहचान के लिए डीएनए परीक्षण की संभावना भी जताई गई है।
इसके अतिरिक्त सरकार ने हादसे के बाद तुरंत राहत कार्य शुरू किया है। N. Chandrababu Naidu (मुख्यमंत्री, आंध्र प्रदेश) ने घायलों को सर्वोत्तम चिकित्सा सहायता देने तथा मृतकों के परिजनों को हर संभव सहायता सुनिश्चित करने का आदेश दिया है।
क्यों और कैसे हुआ यह हादसा?
घटना के शुरुआती विवरणों के अनुसार, मोटर साइकल ने बस के नीचे फँसते-फँसते उसका ईंधन टैंक या इंजन के निकट हिस्सा छू लिया, जिससे चिंगारियाँ उठीं और अग्नि फैली।
बस का मुख्य द्वार जाम हो जाने से यात्रियों को समय रहते बाहर निकलने का मौका नहीं मिला — यह एक बड़े कारण के रूप में सामने आया है।
अध्ययन में यह भी बताया गया कि यात्रियों का अधिकांश हिस्सा सो रहा था, इसलिए जब आग भड़ी तो चेतना कम थी और प्रतिक्रिया देने में देरी हुई।
इस तरह की दुर्घटना ने एक बार फिर याद दिलाया है कि लंबी दूरी की बसें (विशेष रूप से रात में) पर्याप्त अग्नि सुरक्षा व्यवस्था, इमरजेंसी निकास और चालक-सहायता के बिना कितनी जोखिमभरी हो सकती हैं।
असर और चुनौतियाँ
इस घटना ने यात्री बसों की सुरक्षा मानकों पर प्रश्नचिन्ह लगाया है — चाहे वह बस की फिटनेस हो, अग्नि-बचाव उपकरण हों, इमरजेंसी निकलने के द्वार हों या ड्राइवर-कर्मियों की सतर्कता।
हादसे से प्रभावित परिवारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति पर भी बड़ा झटका लगा है — जिनकी अचानक मौत हुई, वे कई बार घर का एकमात्र कमाऊ व्यक्ति होते हैं।
मार्ग-सड़क सुरक्षा एवं बस ऑपरेटरों की जिम्मेदारी के साथ-साथ राज्य और केंद्रीय स्तर पर नियामक एजेंसियों को भी अधिक सक्रिय होना पड़ेगा ताकि ऐसी घातक दुर्घटनाओं की आवृत्ति कम हो सके।
सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार की जरूरत है — रात में चलने वाली निजी बसों की निगरानी, चालक की थकान-प्रबंधन, इमरजेंसी सुविधाओं का ऑडिट और समय-समय पर दुर्घटना-प्रशिक्षण आवश्यक नजर आता है।



