
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है। राज्य चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के 29 नगर निगमों के चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है, जिसके साथ ही शहरी राजनीति में हलचल साफ दिखाई देने लगी है। लंबे समय से टलते आ रहे स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर अब तस्वीर साफ हो गई है और सभी प्रमुख राजनीतिक दल मैदान में उतरने की तैयारी में जुट गए हैं। इन चुनावों को न केवल शहरी प्रशासन के लिहाज से अहम माना जा रहा है, बल्कि आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों के सेमीफाइनल के रूप में भी देखा जा रहा है।
चुनाव आयोग के अनुसार, इन 29 नगर निगमों में चरणबद्ध तरीके से मतदान कराया जाएगा, ताकि शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें। इसके साथ ही आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई है, जिसका असर सीधे तौर पर सरकारी घोषणाओं और राजनीतिक गतिविधियों पर पड़ेगा। नगर निगम चुनावों में मुंबई, पुणे, नागपुर, ठाणे, नासिक और औरंगाबाद जैसे बड़े शहरी निकाय शामिल हैं, जहां का परिणाम राज्य की राजनीति की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इन चुनावों को लेकर सबसे ज्यादा नजरें सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों की रणनीति पर टिकी हुई हैं। एक ओर जहां बीजेपी, शिवसेना (दोनों गुट), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अपनी-अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में हैं, वहीं स्थानीय मुद्दे जैसे पानी, सड़क, कचरा प्रबंधन, टैक्स और शहरी विकास चुनावी बहस के केंद्र में रहने वाले हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नगर निगम चुनावों में जनता का मूड राज्य सरकार के कामकाज को लेकर भी संकेत देगा।
खास बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं, जिसका असर स्थानीय स्तर पर भी साफ नजर आ सकता है। गठबंधन टूटने, नए राजनीतिक समीकरण बनने और नेताओं के दल बदलने की घटनाओं के बाद यह पहला बड़ा मौका होगा, जब पार्टियां शहरी मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ परखेंगी। ऐसे में टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार रणनीति तक, हर कदम बेहद सोच-समझकर उठाया जाएगा।



