मुंबई, 1 सितम्बर 2025 — बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान आंदोलनकारी मनोज जरांगे के पक्ष में सख्त टिप्पणी करते हुए यह स्पष्ट किया है कि बिना पूर्व अनुमति के किसी भी सार्वजनिक स्थान पर आंदोलन नहीं किया जा सकता। यह रुख आज उच्च न्यायालय द्वारा विशेष सुनवाई में जाहिर किया गया, जिससे आंदोलन की दिशा और स्वरूप दोनों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा.
सुनवाई और विश्लेषण
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने जनता के आवागमन और व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर “अनिश्चितकाल तक कब्जा” आंदोलन के तहत स्वीकार्य नहीं है। अदालत का यह संदेश था कि लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चलते हैं, लेकिन प्रदर्शन केवल पूर्व निर्धारित और अनुमति प्राप्त जगहों पर करने चाहिए।
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अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि यदि राज्य चाहें, तो नवी मुंबई के खारघर जैसे वैकल्पिक स्थानों पर शांतिपूर्ण आंदोलन की अनुमति देने पर विचार किया जा सकता है।
प्रभाव और आंदोलन का परिदृश्य
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मनोज जरांगे द्वारा आयोजित यह आंदोलन गणेशोत्सव के समय में किया जाना था, जिससे पुलिस बल पहले से ही कानून-व्यवस्था व्यवस्था संभालने में व्यस्त था। ऐसे में हाईकोर्ट ने आंदोलन की अनुमति न देकर सार्वजनिक सुविधा को प्राथमिकता दी।
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आज एक विशेष बेंच द्वारा की गई सुनवाई में, उच्च न्यायालय ने पुनः स्पष्ट किया कि आंदोलन के लिए “अनुमति लेना अनिवार्य है, बिना अनुमति वह धरना नहीं दे सकते।”
