
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने नाटो महासचिव मार्क रूटे द्वारा हाल ही में दिए गए एक दावे को सख्त शब्दों में खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा भारत पर रूस से तेल खरीदने पर लगाए गए शुल्क (tariff) के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन कर उनसे यूक्रेन युद्ध की रणनीति पर स्पष्टीकरण माँगा। हालांकि, MEA ने स्पष्ट किया है कि ऐसा कोई कॉल नहीं हुआ और रूटे का बयान “तथ्यात्मक रूप से गलत एवं पूरी तरह निराधार” है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैस्वाल ने कहा है कि भारत-रूस के बीच किसी भी बातचीत की व्याख्या तीसरे पक्ष द्वारा निर्दिष्ट करना उचित नहीं है। इस तरह के दावे न केवल कूटनीतिक प्रक्रियाओं को जटिल बनाते हैं बल्कि देशों की संप्रभुता और निर्णय लेने की गतिकी पर भी प्रश्न खड़े करते हैं। MEA ने कहा कि भारत अपने ऊर्जा संबंधी निर्णयों को “राष्ट्रीय हित, आर्थिक सुरक्षा और बाज़ार की परिस्थितियों” को ध्यान में रखकर करता है, और ऐसे दावे उस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हो सकते जो सार्वजनिक रूप से पेश किए जाएँ।
इस विवाद की पृष्ठभूमि यह है कि अमेरिकी प्रशासन ने रूस पर पाबंदियाँ और शुल्कों की नीति अपनाई है, और ऐसे कुछ कदम भारत सहित अन्य देशों को प्रभावित कर सकते हैं। रूटे ने अपने बयान में यह भी कहा था कि भारत को पुतिन को फोन कर यह बताना चाहिए कि उन्हें शांति वार्ता पर गंभीर होना चाहिए अन्यथा ‘यह भारत पर भी भारी पड़ सकता है’। रूटे ने यह तर्क दिया कि टैरिफ और नियमों के दबाव से रूस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है।
MEA ने इस पूरे दावे को “बेबुनियाद बयान” करार दिया है। उसने यह भी कहा है कि नाटो जैसी एक अंतरराष्ट्रीय संस्था से अपेक्षा की जाती है कि वह सार्वजनिक बयान देते समय अधिक जिम्मेदारी और सटीकता का पालन करे। ऐसे बयान सिर्फ देशों की छवि को प्रभावित नहीं करते बल्कि रणनीतिक संप्रभुता और कूटनीतिक संतुलन भी उल्लंघन कर सकते हैं।
राजनीति और मीडिया वर्ग में इस विवाद को लेकर कई प्रश्न उठे हैं:
क्या रूटे को इस तरह की जानकारी विश्वसनीय स्रोतों से मिली थी या यह विश्लेषण आधारित दुष्प्रचार था?
यदि भारत-रूस के बीच वास्तव में किसी वार्ता की स्थिति होती, तो उसे सार्वजनिक तौर पर कैसे प्रकाशित किया जाना चाहिए था?
इस तरह की घोषणा अन्य देशों की विदेश नीति पर किस प्रकार प्रभाव डाल सकती है?
इस घटना से स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में बयानबाज़ी की शक्तियाँ काफी अधिक हैं। भारत ने इस स्थिति पर स्पष्ट रुख लिया है कि वह अपने निर्णयों और संवादों को स्वतंत्र तरीके से, बिना किसी प्रभाव या दायित्व के, आगे बढ़ाएगा।