
आजकल हम जितना भी डिजिटल जीवन जीते हैं — चाहे वो मोबाइल ऐप इस्तेमाल करना हो, सोशल मीडिया हो, नेविगेशन हो, या ऑनलाइन शॉपिंग — एक अहम सवाल लगातार हमारे साथ है: हमारी निजी जानकारी कितनी सुरक्षित है? एक हालिया रिपोर्ट ने इस विषय को केंद्र में लाया है और बताया है कि मोबाइल डेटा की ट्रैकिंग — वह भी हमारी जानकारी की अनजानी गतिविधियों के जरिए — किस तरह हमारी गुप्तियों को खतरे में डाल सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे फोन के सेंसर, लोकेशन डेटा, काल और मैसेज लॉग्स, ऐप एक्टिविटी, ब्राउज़िंग इतिहास आदि को मिलाकर जांचने पर, कंपनियाँ हमारी दिनचर्या, आदतें, पसंद-नापसंद आदि को बड़ी सूक्ष्मता से समझ सकती हैं। ये डेटा केवल एक ऐप द्वारा इकट्ठा नहीं किए जाते, बल्कि अक्सर तीसरे पक्ष (third-party) ट्रैकर, विज्ञापन एजेंसियाँ, एनालिटिक्स / डेटा एजेंसियाँ, और अन्य साझेदारों द्वारा साझा या वहन किए जाते हैं।
उदाहरण के लिए, किसी मौसम ऐप द्वारा ली गई लोकेशन जानकारी और ब्राउज़िंग ऐप में आपके विज़िट किए गए पेजों का डेटा मिलाकर कंपनियाँ यह अनुमान लगा सकती हैं कि आप किस क्षेत्र में रहते हैं, किस तरह की सामग्री पसंद करते हैं, और किस समय आप घर छोड़ते हैं। ऐसी सूचनाएँ उन्हें यूज़र प्रोफाइल तैयार करने की आज़ादी देती हैं — जो विज्ञापन, सुझाव, या डिजिटल रीयलिटी में भी उपयोग हो सकती हैं।
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि जब ये डेटा अनाधिकृत रूप से साझा या ली जाती है, तो गोपनीयता के उल्लंघन, पहचान चोरी, फिशिंग हमलों और अन्य साइबर अपराधों का जोखिम बढ़ जाता है। उदाहरण स्वरूप, लोकेशन डेटा का अत्यधिक विश्लेषण करने पर यह पता लगाया जा सकता है कि आप कब किस स्थान पर जाते हैं — और यदि यह डेटा भ्रष्ट हाथों में पड़ जाए, तो आपकी सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, कई ऐप्स उपयोगकर्ता की अनुमति (consent) लिए बिना या अधूरी जानकारी देकर डेटा एक्सेस करते हैं। जब तक उपयोगकर्ता यह जानते नहीं कि उनके डेटा का उपयोग कैसे किया जा रहा है, वे सचमुच ‘सहमति’ नहीं दे पा रहे हैं। इसी संदर्भ में नीति-निर्माताओं और सरकारों को भी कदम उठाने की ज़रूरत है।
भारत में, Digital Personal Data Protection Act, 2023 नामक अधिनियम भारत की डिजिटल डेटा सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया है। यह अधिनियम यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है कि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा का उपयोग सुरक्षित, पारदर्शी और उपयोगकर्ता की सहमति पर आधारित हो। यदि इसे ठीक से लागू किया जाए और उसका पालन निगरानी में हो, तो यह उपयोगकर्ताओं की निजता को बेहतर सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, इस रिपोर्ट ने यह सुझाव दिया है कि हमें खुद से कुछ सावधानियाँ अपनानी चाहिए:
ऐप्स को दिए गए अनुमतियों (permissions) पर नज़र रखें — खासकर लोकेशन, कैमरा, माइक्रोफोन आदि।
अनावश्यक ऐप्स को हटाएँ और उन ऐप्स को ही रखें जो विश्वसनीय हों।
ऐप्स और ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) अपडेट रखें — क्योंकि अपडेट में अक्सर गोपनीयता और सुरक्षा सुधार होते हैं।
गुमनाम ब्राउज़िंग मोड, VPN, और अन्वेषक टूल्स (privacy-focused browsers) का उपयोग करें।
डेटा सुरक्षा नीतियाँ (privacy policies) पढ़ें — यह जानना जरूरी है कि ऐप आपके डेटा का उपयोग कैसे करेगी।
इस प्रकार, यह मामला सिर्फ तकनीकी चिंता नहीं है — यह हमारी निजता, स्वायत्तता और डिजिटल अधिकारों से जुड़ा है। यदि उपयोगकर्ता, टेक कंपनियाँ और सरकारों के बीच संतुलन बनाए रखा जाए, तभी हम एक सुरक्षित और भरोसेमंद डिजिटल दुनिया बना सकते हैं।