नेपाल में किशोर-युवावर्ग या “Generation Z” के बड़े पैमाने पर उभरे विरोध ने देश की राजनीतिक व्यवस्था को झकझोर दिया है। युवाओं ने सरकारी भ्रष्टाचार, निजी लाभ का खेल, और सोशल मीडिया पर अचानक लगे प्रतिबंध के खिलाफ आवाज़ उठाई। इन प्रदर्शनों की चिंगारी एक बड़े सामाजिक आक्रोश में बदल गई, जिससे सरकार को पीछे हटना पड़ा। न्यूज़ रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया और इस्तीफा दे दिया।
इन प्रदर्शनों की घटना इतने गहरे असंतोष को दिखाती है कि युवा वर्ग अपनी आवाज़ सिर्फ बाधा एवं आलोचना के लिए नहीं बल्कि बदलाव के लिए सक्रिय है। सोशल मीडिया प्रतिबंध, बेरोज़गारी, राजनीतिक पारिवारिकवाद (nepotism), जवाबदेही की कमी जैसे मुद्दों ने युवाओं का धैर्य समाप्त कर दिया।
अब विपक्ष में नहीं बल्कि सेना ने भी मध्यस्थ की भूमिका लेना शुरू कर दी है। समाचारों में आया है कि सेना और Gen Z प्रतिनिधियों के बीच चर्चा हो रही है कि एक अंतरिम सरकार की स्थापना हो, जिसमें मौजूद राजनीतिक दलों से परे, न्यायपालिका, नागरिक समाज और युवा नेतृत्व को भागीदारी मिले। संभव उम्मीदवारों में पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम सबसे आगे है।
हालांकि इस प्रक्रिया में चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं। Gen Z आंदोलन के कुछ समूह सेना के साथ जुड़ाव पर भरोसा नहीं कर रहे हैं जब तक कि पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया न हो, और साथ ही आवेदित नेताओं की सूची में राजनीतिक एवं राजतांत्रिक तत्वों का शामिल होना आंदोलन की मूल मांगों से दूर जाने की आशंका पैदा करता है।
संक्षेप में, नेपाल इस समय एक संवेदनशील दौर से गुजर रहा है जहाँ युवा शक्ति, राजनीतिक नेतृत्व, न्यायपालिका और सुरक्षा बलों के बीच अस्थायी व्यवस्था तय करना बाकी है। यह समय है जिसमें लोकतांत्रिक मूल्य, जवाबदेही, परिवर्तन की प्रक्रिया और युवा आशाएँ आपस में टकरा रही हैं।