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नेपाल में Gen-Z विरोध प्रदर्शनों में हुई गोलीबारी में 72 मौतें

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नेपाल में हाल ही में हुई Gen-Z आंदोलन नामक विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के मामले ने एक नई मोड़ ले लिया है। 8 सितंबर, 2025 को काठमांडू समेत कई इलाकों में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच टकराव हुआ था, जिसमें गोलीबारी हुई और कम-से-कम 72 लोग मारे गए। उन मौतों को लेकर पूरे देश में गहरा सदमा है। अब इस घटना पर पूर्व प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली ने अपना बचाव पेश करते हुए कहा है कि उन्होंने सुरक्षा बलों को किसी भी तरह से गोली चलाने का आदेश नहीं दिया था। उन्होंने सरकार से घटना की स्वतंत्र जांच कराने की मांग उठाई है।

ओली ने अपने बयान में यह भी कहा कि प्रदर्शनकारियों और हिंसक तत्त्वों ने बड़ी संख्या में सरकारी संपत्तियों, राजनीतिक दलों के कार्यालयों, न्यायालयों और अन्य संवेदनशील केंद्रों को निशाना बनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों में शामिल कुछ लोग हिंसा और तोड़फोड़ के लिए पहले से ही रणनीति बनाए हुए थे।

घटना के संदर्भ में पुलिस ने बताया है कि फायरिंग में लोगों की मौत हुई और घायल भी हुए हैं, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि गोली किसने चलाई और किसने किसे निशाना बनाया। अभी यह भी पता नहीं चला है कि सुरक्षा बलों के पास स्वचालित हथियार (automatic weapons) थे या नहीं। ओली ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ गोलियों के सीधे इस्तेमाल का कोई निर्देश नहीं दिया था।

इसके बाद राजनीतिक माहौल तनावपूर्ण हो गया है। विपक्ष ने ओली सरकार पर हत्या और दमन के आरोप लगाते हुए कहा कि उत्पीड़न और अत्याचार की इस घटना को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। नागरिक समाज भी जांच की पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रहा है।

घटना की पृष्ठभूमि यह है कि Gen-Z नामक आंदोलन ने नौ सितम्बर को बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन किए थे, जिसमें युवाओं ने भाग लिया। प्रदर्शनकारियों ने अपने आक्रोश का कारण माना कि सरकार उनके हक-अधिकारों, आर्थिक और सामाजिक न्याय से विमुख है। हिंसा तब भड़क उठी जब प्रदर्शनकारियों ने सिंह दरबार (सरकारी मुख्यालय), न्यायालय भवन, सुप्रीम कोर्ट और अन्य संविधिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर कब्ज़ा करने की कोशिश की।

घायलों का इलाज चल रहा है, और मारे गए लोगों की संख्या की पुष्टि के लिए अधिकारी विवरण एकत्रित कर रहे हैं। ओली ने इस बीच सुझाव दिया है कि न्यायालय या किसी तटस्थ आयोग द्वारा पूरी घटना की तंगी से जांच होनी चाहिए ताकि दोषियों को सजा मिल सके और भविष्य में ऐसी हिंसा न हो।

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