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मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने माता खीर भवानी मंदिर में अर्चना की

जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार को गांदरबल ज़िले के तुलमुला गांव में स्थित प्रसिद्ध माता खीर भवानी मंदिर में पूजा-अर्चना की। यह मंदिर कश्मीर घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल है और ज्येष्ठ अष्टमी के अवसर पर यहां हर साल विशाल मेला आयोजित किया जाता है।

मुख्यमंत्री का दौरा

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सुबह मंदिर पहुंचे और उन्होंने मंदिर प्रांगण में पूजा कर माता खीर भवानी का आशीर्वाद लिया। उन्होंने वहां मौजूद श्रद्धालुओं से बातचीत की और उनकी समस्याओं को ध्यान से सुना। इसके साथ ही उन्होंने प्रशासन को यह निर्देश दिए कि आगामी मेले के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं जैसे स्वच्छ पेयजल, बिजली, चिकित्सा सेवाएं, सफाई व्यवस्था और यात्री निवास की व्यवस्था पहले से सुनिश्चित की जाए।

धार्मिक सौहार्द का संदेश

मुख्यमंत्री ने कहा कि खीर भवानी मंदिर कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है। उन्होंने श्रद्धालुओं से बातचीत करते हुए कहा कि कश्मीरियत की असली पहचान इस प्रकार के आपसी भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द में ही है। उमर अब्दुल्ला ने यह भी आश्वासन दिया कि सरकार कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास के लिए प्रतिबद्ध है।

पवित्र कुंड और मान्यताएं

मंदिर परिसर में स्थित एक पवित्र कुंड है, जिसके जल का रंग समय-समय पर बदलता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह रंग परिवर्तन शुभ या अशुभ संकेत देता है। जब पानी का रंग दूधिया या हल्का गुलाबी होता है, तो इसे शुभ माना जाता है, जबकि गहरे रंग को अशुभ संकेत माना जाता है। वर्ष 1990 में जब घाटी में आतंकवाद अपने चरम पर था, उस समय इस कुंड का रंग गहरा काला हो गया था जिसे एक चेतावनी के रूप में देखा गया था।

यात्री निवास की योजना

मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा हाल ही में घोषित ‘यात्री निवास’ निर्माण परियोजना की भी सराहना की, जो मंदिर में आने वाले हजारों श्रद्धालुओं को बेहतर ठहरने की सुविधा देगी। यह पहल आने वाले वर्षों में तीर्थ यात्रियों की संख्या को और अधिक बढ़ावा देगी और स्थानीय पर्यटन को भी बल देगी।


महत्वपूर्ण तथ्य:

  • माता खीर भवानी मंदिर को रागन्या देवी को समर्पित माना जाता है, जो हिंदू धर्म में एक शक्तिशाली देवी मानी जाती हैं।
  • यह मंदिर एक झरने के ऊपर बना है और इसके चारों ओर चनार (चिनार) के पेड़ लगे हैं।
  • यहां हर वर्ष ज्येष्ठ अष्टमी पर हज़ारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
  • यह स्थल हिंदू-मुस्लिम एकता और कश्मीरियत का प्रतीक है।

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