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‘ऑपरेशन सिंदूर’ विवाद

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देशभर की राजनीति में एक बार फिर “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर जोरदार सियासी बहस छिड़ गई है। बुधवार, 16 दिसंबर 2025 को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने एक विवादित बयान दिया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि भारत को ऑपरेशन सिंदूर के पहले दिन ही “हार” का सामना करना पड़ा था और भारतीय वायुसेना पूरी तरह असमर्थ रही। इस बयान ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशीलता को उभारते हुए राजनीतिक गलियारों में भारी प्रतिक्रिया उत्पन्न कर दी है।

चव्हाण ने आरोप लगाया कि सरकार और रक्षा मन्त्रालय ने ऑपरेशन के वास्तविक तथ्यों को देश के सामने नहीं रखा। उन्होंने कहा कि लगभग आधे घंटे तक चली हवाई झड़प में भारतीय विमानों को नुकसान पहुँचा और वायुसेना के विमान उड़ान भरने में असफल रहे। इसके अलावा उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि सीज़फायर क्यों किया गया, जबकि भारत की सेनाओं की स्थिति अस्थिर रही। चव्हाण ने यह कहते हुए चीन को भी सीज़फायर और सैन्य जानकारी के प्रसार में शामिल बताया।

उनके इन बयानों के बाद भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कांग्रेस को राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में सेना के खिलाफ बयानबाजी करने का आरोप लगाया। भाजपा नेताओं का कहना है कि ऐसे बयान सेना और उसके वीर जवानों के मनोबल को चोट पहुँचाते हैं और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ हैं। उन्होंने चव्हाण के बयान को “राजनीतिक लाभ के लिए सेना की छवि को नुकसान पहुँचाने वाला” बताया।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह विवाद महज़ बयानबाजी से कहीं आगे बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और चुनावी रणनीतियों का हिस्सा बनता जा रहा है। “ऑपरेशन सिंदूर” खुद मई 2025 में एक बड़ा सैन्य अभियान था, जो पहलागाम आतंकी हमला के जवाब के रूप में भारत ने पाकिस्तान तथा PoK में आतंकवादी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की थी और इसे सेना की एक निर्णायक कार्रवाई के रूप में पेश किया गया था।

इस सियासी चर्चा में पूर्वी दलों और संसद सदस्यों के अन्य बयान भी सामने आए हैं — कुछ ने सरकार और विपक्ष दोनों पर निशाना साधा है। इस पूरे प्रकरण से स्पष्ट होता है कि सैन्य अभियानों तथा सुरक्षा से जुड़े मामलों में राजनीतिक बयानबाज़ी देश की राजनीति को और अधिक तेज धार दे सकती है, खासकर आगामी चुनावों और राष्ट्रीय समय में।

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