भारत की वायुसेना ने “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान अपने सु-30 (Sukhoi) विमानों को ब्रह्मोस (BrahMos) क्रूज मिसाइल से लैस करने का कदम उठाया है — एक ऐसा कदम जिसे रक्षा विशेषज्ञ और रणनीतिक विश्लेषक दोनों ही महत्वपूर्ण मान रहे हैं। यह जानकारी हाल ही में सामने आई है कि लगभग 40 सु-30 विमानों को संशोधित किया गया है ताकि वे लंबी दूरी की स्ट्राइक मिशनों में इस उन्नत हथियार को ले जा सकें।
ऑपरेशन सिंदूर, जो भारत-पाकिस्तान सीमाओं पर आतंकवादी ठिकानों पर लक्षित हवाई हमले के रूप में संचालित किया गया था, में ब्रह्मोस मिसाइलों का उपयोग इस बात का संकेत है कि भारतीय वायुसेना अब अधिक सटीक और लंबी दूरी की हवाई मोर्चेबंदी रणनीति अपना रही है। इन विमानों में की गई यह उन्नति उन्हें युद्ध-क्षेत्र में “स्टैंड-ऑफ” क्षमताएँ देती है — यानी, बिना दुश्मन क्षेत्र में गहरे घुसे हुए, शत्रु ठिकानों पर प्रभावी हमला करना संभव हो जाता है।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस संशोधन का एक बड़ा फायदा यह होगा कि सु-30 मिसाइल वाहक के रूप में कार्य करते हुए, अब वे तेजी से लक्ष्य पर पहुंचकर हमला कर सकेंगे और वापसी कर सकेंगे — एक प्रकार का “हाई-स्पीड स्ट्राइक प्ल্যাটफ़ॉर्म” बनकर। इससे भारत की जवाबी कार्रवाई की क्षमता और प्रतिक्रियाशीलता दोनों बढ़ने की संभावना है।
ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस मिसाइलों के प्रयोग को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि आतंकवादी ठिकानों को तहस-नहस करने के लिए इन्हीं मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया — विशेषकर पाकिस्तान की उन स्थलों पर जहां आतंकी संगठन सक्रिय थे। इस प्रयोग को व्यापक सुरक्षा संदेश माना गया, कि भारत अब अपनी रक्षा संरचनाओं और तकनीकी क्षमताओं पर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है।
इसके अलावा, इस कदम को वायुसेना की आधुनिकरण नीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। इसका उद्देश्य है कि भविष्य में अधिक विमानों को ब्रह्मोस जैसी क्रूज मिसाइलों के साथ सक्षम बनाना, ताकि रणनीतिक ठिकानों पर हमले अधिक सफल हों और एयर लॉजिस्टिक्स का दबाव कम हो।
हालाँकि, इस रणनीति के साथ चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं। विमानों के पेलोड क्षमता, मिसाइल के एवियनिक्स इंटीग्रेशन, लक्ष्य की पहचान और रडार झेलने की प्रणाली — ये सब प्रमुख तकनीकी बिंदु हैं, जिन्हें सफलता पूर्वक हल करना आवश्यक है। इसके अलावा, इस तरह के हथियारों के प्रयोग में नियम-कानून, युद्ध नीति और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को भी ध्यान में रखना होगा।
कुल मिलाकर, सु-30 विमानों को ब्रह्मोस से लैस करना भारतीय वायुसेना की रणनीतिक क्षमताओं को एक नई दिशा देने वाला कदम हो सकता है। यदि यह प्रणाली सफलतापूर्वक लागू होती है, तो भारत की “स्ट्राइक-फर्स्ट” क्षमता और “दर्शनीय रक्षा” मॉडल दोनों को मजबूती मिलेगी।
