पाकिस्तान के संसदीय राजनीति में इस सप्ताह एक बेहद अहम मोड़ आया है जब देश की निचली संसद, National Assembly of Pakistan ने बुधवार को संवैधानिक रूप से ‘Chief of Defence Forces (CDF)’ के गठन को मंजूरी दे दी। यह मंजूरी उस 27वें संवैधानिक संशोधन के चलते आई है, जिसे सरकार ने सुरक्षा-संस्था और न्यायिक व्यवस्था में बड़े बदलावों के तौर पर पेश किया है।
संशोधन के तहत, तीनों सैन्य शाखाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) की कमान एक नए शीर्ष पद CDF के हाथों समाहित की जा रही है। साथ ही, न्यायिक व्यवस्था में भी बड़ा परिवर्तन प्रस्तावित है—जिसमें एक नई ‘Federal Constitutional Court’ का निर्माण और वर्तमान शीर्ष न्यायालय के अधिकारों में कटौती जैसी व्यवस्था शामिल है।
इस प्रस्ताव को राज्य की रक्षा और सुरक्षा-प्रक्रियाओं की समयबद्धता के नाम पर पेश किया गया है। सरकार का दावा है कि इससे सैन्य एवं न्यायिक व्यवस्था अधिक समन्वित, प्रभावी और आधुनिक बनेगी।
हालाँकि, इस कदम पर विपक्षी दलों, न्यायविदों और नागरिक समाज की ओर से तीखी आलोचना भी सामने आई है। उनका कहना है कि ये सुधार वास्तव में नागरिक-शासन, न्यायिक स्वतंत्रता तथा शक्ति संतुलन को कमजोर करेंगे। विशेष रूप से यह चिंता जताई जा रही है कि जो सर्वोच्च न्यायालय था, उसकी शक्तियों को कम करके न्यायपालिका पर कार्यपालिका एवं सेना का नियंत्रण बढ़ाया जा रहा है।
राजनीतिक प्रक्रिया भी विवादित रही है: विपक्ष ने इस बिल पर वॉकआउट किया, हंगामा किया गया, और कहा गया कि इस तरह के संवैधानिक परिवर्तन में पर्याप्त सार्वजनिक व राजनीतिक चर्चा नहीं हुई।
भविष्य-परिप्रेक्ष्य:
यह बदलाव पाकिस्तान के सिविल-मिलिट्री संबंधों (civil-military relations) में एक नई धारा ला सकता है। यदि यह व्यवस्था लागू हो जाती है, तो सेना की भूमिका संवैधानिक रूप से और भी सुदृढ़ होगी, जिससे देश में लोकतांत्रिक नियंत्रण के लिए नए प्रश्न उठ सकते हैं।
साथ ही, न्यायपालिका द्वारा अब लोकतांत्रिक सरकारों और सैन्य शक्तियों पर आज तक रखे गए नियंत्रण-तंत्र (checks & balances) की सीमाएँ आगे और सिकुड़ सकती हैं।
