पाकिस्तान में इस समय इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ ने तबाही मचा रखी है। पंजाब प्रांत के सियालकोट, रावी, सतलुज और चिनाब नदी क्षेत्रों में वर्षा और बाढ़ के कारण लगभग 15 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। इस आपदा में अब तक 800 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, और 2.5 लाख लोग बेघर हो चुके हैं। लगभग 1,432 गांव पूरी तरह डूब गए हैं। राहत एवं बचाव कार्य के लिए सरकार ने 700 राहत शिविर और 265 चिकित्सा केंद्र स्थापित किए हैं, मगर हालात अभी भी घातक बने हुए हैं।
दौरे के दौरान पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने एक विवादास्पद बयान देते हुए दावा किया कि भारत द्वारा छोड़ा गया पानी झरने और नदियों के माध्यम से पाकिस्तान में पहुंचा, जिसमें मृत शरीर, पशु और मलबे भी शामिल थे। उन्होंने बताया कि स्थानीय लोग नदी में बहती लाशें देखकर चकित रह गए थे। सियालकोट जम्मू से बहने वाले जलमार्गों के नीचे बसा है, और भारत से पानी छोड़े जाने पर यह क्षेत्र अक्सर बाढ़ के संपर्क में आता है। आसिफ ने यह भी स्वीकार किया कि भारत ने पानी छोड़ने से पहले दो बार पाकिस्तान को सूचित किया था।
इन बयानों ने सोशल मीडिया पर कटु प्रतिक्रिया और आलोचना को जन्म दिया। कई उपयोगकर्ताओं ने सरकार की जल प्रबंधन और बुनियादी ढांचे की चूक को दोषी ठहराते हुए आलोचना की। कुछ की प्रतिक्रिया रही, “लाशें तो बाढ़ के पानी में नहीं आतीं”, और “बाढ़ के समय तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक जवाबों की ज़रूरत होती है, राजनीतिक बयानबाज़ी की नहीं”।
दूसरी ओर, असली समस्या पर ध्यान आकर्षित करते हुए कई विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार और अवैध निर्माण को एक बड़ी वजह बताया। रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि आधारित परियोजनाओं में मिले कोष का केवल 20-30 प्रतिशत हिस्सा ही सही तरीके से उपयोग में आता है; बाकी भ्रष्टाचार की आगोश में चला जाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि आवंटित बजट में कटौती, अवैध अतिक्रमण और जलमार्गों पर कब्जा—ये सभी समस्याएँ प्राकृतिक आपदा को और विकराल बना देते हैं।
इसके अतिरिक्त, विकिपीडिया पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार यह 38 वर्षों में सबसे व्यापक और घातक बाढ़ है, जिसमें सिंधु जल संधि की अस्थायी स्थगन के बाद जल संबंधी व्यवहारों में पारदर्शिता की कमी ने और मुश्किलें बढ़ा दी हैं।