
भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज और Padma Shri से सम्मानित पियूष पांडे का 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। पियूष पांडे के जाने से देश के विज्ञापन उद्योग ने न केवल अपना सबसे रचनात्मक दिमाग खोया है, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व को खोया है जिसने भारतीय विज्ञापन को “भारतीयता” का चेहरा दिया।
🎨 विज्ञापन को भारतीय आत्मा देने वाले पियूष पांडे
राजस्थान के जयपुर में जन्मे पियूष पांडे ने 1982 में Ogilvy India से अपने करियर की शुरुआत की। अपने काम, सोच और भाषा की पकड़ से उन्होंने कंपनी को भारतीय विज्ञापन उद्योग का पर्याय बना दिया।
उन्होंने उन दिनों अंग्रेज़ी-केंद्रित विज्ञापन जगत में हिंदी और लोकभाषा को नया दर्जा दिलाया। उनका मानना था कि “भारत की आत्मा अंग्रेज़ी में नहीं, बल्कि उसकी मातृभाषाओं में बसती है।” इसी सोच ने उनके विज्ञापनों को जनसामान्य से जोड़ा और भावनात्मक रूप से असरदार बनाया।
💡 यादगार विज्ञापन अभियान
पियूष पांडे की क्रिएटिव जीनियस के चलते कई ऐतिहासिक विज्ञापन बने, जिनमें शामिल हैं:
Fevicol का “जोड़ तोड़ के रखो” — जिसने भारत के हर घर में Fevicol को स्थायी बना दिया।
Cadbury Dairy Milk का “कभी खुशी कभी चॉकलेट” — जिसमें मधुर संगीत और मासूमियत का मेल दिखा।
Asian Paints का “हर घर कुछ कहता है” — जिसने दीवारों को भावनाओं की भाषा दी।
Pulse Candy, SBI Life, और Volkswagen India के कई चर्चित कैंपेन भी उनके निर्देशन में बने।
राजनीतिक प्रचार “अब की बारी, मोदी सरकार” — जिसने राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान को और गहरा किया।
🧠 नेतृत्व और सम्मान
पियूष पांडे 2019 में Ogilvy South Asia के Executive Chairman और Global Chief Creative Officer बने। उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने दुनिया भर में क्रिएटिविटी के कई अवॉर्ड जीते, जिनमें Cannes Lions और Clio Awards भी शामिल हैं।
भारत सरकार ने उन्हें Padma Shri (2016) से सम्मानित किया। इसके अलावा, उन्हें कई बार “India’s Most Influential Creative Person” भी घोषित किया गया।
🕊️ निधन और शोक संदेश
उनके निधन के बाद विज्ञापन जगत और बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक हस्तियों तक ने शोक व्यक्त किया। अमिताभ बच्चन, गुलज़ार, अनुराग कश्यप, और सुजॉय घोष जैसे नामों ने उन्हें “वो इंसान बताया जिसने भारत को बोलना सिखाया”।
उनका अंतिम संस्कार शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 को मुंबई में किया जाएगा।
💬 एक प्रेरक विरासत
पियूष पांडे का मानना था —
“विज्ञापन सिर्फ बेचने का माध्यम नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं से संवाद करने की कला है।”
आज उनका जाना न केवल उद्योग के लिए, बल्कि हर उस क्रिएटिव व्यक्ति के लिए एक गहरी क्षति है जो भावनाओं के ज़रिए संवाद में विश्वास रखता है।



