
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित गाजा शांति योजना की खुले तौर पर प्रशंसा की है। यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब हमास ने इस योजना के कुछ हिस्सों को स्वीकार करने की इरादा जताया है, विशेषकर उन बिन्दुओं को लेकर जो बंदकों की रिहाई और संघर्ष विराम से जुड़े हैं।
मोदी ने एक सार्वजनिक संदेश में कहा कि ट्रंप की अगुवाई में शांति प्रयासों को निर्णायक प्रगति मिल रही है। उन्होंने ये संकेत भी दिए कि बंदकों की रिहाई की संभावना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मोदी ने यह भी माना कि यह पहल किसी भी अन्य प्रयास से अधिक विश्वसनीय मार्ग हो सकती है — यह इज़राइली और फिलिस्तीनी दोनों जनों के लिए दीर्घकालिक और स्थिर शांति की संभावनाएँ खोलेगी।
ट्रंप की 20-बिंदु शांति प्रस्तावना में यह बिंदु शामिल है कि यदि इज़रायल सार्वजनिक रूप से इस समझौते को स्वीकार करता है, तो हमास 72 घंटे के भीतर सभी बंदकों को रिहा करेगा। इसके अतिरिक्त, इस प्रस्तावना में युद्ध विराम, इज़राइली सेना की वापसी, मानवीय सहायता की पहुँच सुनिश्चित करना और गाजे की सरकार की रूपरेखा तय करने जैसे प्रावधान मौजूद हैं।
हमास ने अपनी ओर से इस शांति प्रस्ताव की रूपरेखा स्वीकार करने की बात कही है — जैसे युद्ध समाप्ति, इज़रायल की वापसी, बंदकों की रिहाई और सहायता पहुँच — लेकिन कई बिंदुओं पर वह और वार्ता करना चाहता है। विशेष रूप से गाज़ा क्षेत्र की प्रशासनिक संरचना, हमास की भूमिका, और अंतर्राष्ट्रीय निगरानी बलों की तैनाती पर स्पष्टता अभी आवश्यक है।
मोदी की इस टिप्पणी का एक और पहलू यह है कि भारत इस महत्वपूर्ण वैश्विक पहलकदमी में योगदान देने और शांति प्रक्रिया का समर्थन करने की इच्छा रखता है। उन्होंने आशा जताई कि सभी संबंधित पक्ष एक साथ मिलकर ट्रंप की इस पहल का समर्थन करें और इस संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ें।
हालाँकि, मोदी की इस समर्थन टिप्पणी ने भारत में राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी उत्पन्न की हैं। कुछ आलोचकों ने कहा है कि भारत को मध्यस्थ या न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, न कि किसी एक प्रस्ताव का सार्वजनिक समर्थन देना चाहिए। इसके अलावा, यह देखना बाकी है कि ट्रंप की योजना की व्यवहार्यता और हमास की स्वीकार्यता कितनी सफल होती है।
इस प्रकार, यह घटना सिर्फ एक संदेश से बढ़ कर है — यह वैश्विक शक्ति संतुलन, मध्य पूर्व की राजनीति और भारत की विदेश नीति की दिशा को भी प्रभावित कर सकती है। शांति प्रस्ताव की दिशा, हमास की प्रतिक्रिया, और भारत की भूमिका — ये उन कारकों में होंगे जिनसे आगे की पॉलिटिकल लय तय होगी।