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“अब भारत का पानी भारत के लिए: सिंधु जल संधि निलंबन पर पीएम मोदी का कड़ा संदेश”

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के साथ चल रहे तनाव के बीच सिंधु जल संधि पर भारत सरकार द्वारा लिए गए ऐतिहासिक फैसले को लेकर पहली बार सार्वजनिक टिप्पणी की है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा,

“भारत के हक का पानी भी बाहर जा रहा था, अब ऐसा नहीं होगा।”

यह बयान भारत के उस निर्णय के बाद आया है, जिसमें 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से निलंबित करने का ऐलान किया गया था।

🔴 क्यों लिया गया यह फैसला?

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई थी। भारत ने इस हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकियों का हाथ बताया और इसके जवाब में सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।

📜 सिंधु जल संधि क्या है?

सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। इसके अंतर्गत:

भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित सिंचाई और पनबिजली परियोजनाएं चलाने की इजाजत थी, लेकिन अब सरकार इन प्रतिबंधों से मुक्त होकर रणनीतिक परियोजनाओं पर काम तेज कर रही है।


⚙️ किन परियोजनाओं पर काम होगा तेज?

भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में निम्नलिखित चार प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने का आदेश दिया है:

  1. पाकल डुल परियोजना – 1000 मेगावाट
  2. किरु परियोजना – 624 मेगावाट
  3. क्वार परियोजना – 540 मेगावाट
  4. रतले परियोजना – 850 मेगावाट

ये सभी परियोजनाएं चेनाब नदी पर आधारित हैं, जो संधि के तहत पाकिस्तान को दी गई नदियों में शामिल है।


🇵🇰 पाकिस्तान की तीखी प्रतिक्रिया

भारत के इस कदम पर पाकिस्तान ने कड़ी आपत्ति जताई है। पाकिस्तान सरकार ने इसे ‘आक्रामक रणनीति’ बताते हुए कहा है कि

“भारत का यह कदम युद्ध की कार्रवाई के समान है।”

इस मुद्दे को लेकर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाने की धमकी भी दी है।


🧠 विशेषज्ञों की राय


📢 पीएम मोदी का संदेश क्या दर्शाता है?

प्रधानमंत्री का यह बयान यह स्पष्ट करता है कि भारत अब पाकिस्तान को सिर्फ सीमा पर ही नहीं, स्ट्रैटेजिक नीतियों के माध्यम से भी जवाब देने की तैयारी में है।
इससे यह भी संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में भारत की जल नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।


✅ निष्कर्ष:

भारत अब सिर्फ कूटनीतिक बयानबाज़ी से नहीं, नीतिगत कार्रवाई से अपने हितों की रक्षा कर रहा है। सिंधु जल संधि का निलंबन भारत की उस नई रणनीति की ओर संकेत करता है जो सुरक्षा और संसाधनों पर पूर्ण अधिकार की दिशा में केंद्रित है।

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