उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब एक नया दल बदलने का घटनाक्रम उभरकर आया है। चायल सीट से सपा विधायक पूजा पाल, जिन्हें अनुशासनहीनता और पार्टी लाइन से हटने के आरोपों में सपा से निष्कासित किया गया था, भाजपा द्वारा अपनी ओर आकर्षित करने की तैयारियों का केंद्र बनी हुई हैं। भाजपा संभवत: उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव 2027 में मैदान में उतारने पर विचार कर रही है, ताकि पाल समाज समेत पिछड़ी जातियों के वोट बैंक को अपने पक्ष में आकर्षित किया जा सके।
पार्टी नेताओं ने पूजा पाल को अपनाकर, उन्हें राजनीतिक संभावितसंभावित महत्व और बड़ी जिम्मेदारी सौंपने का मन बनाया है। इस रणनीति के पीछे मुख्य उद्देश्य भाजपा को पिछड़ों और अन्य वंचित समूहों के बीच मजबूत स्थिति दिलाना है। पूजा पाल को महिला और सपा के कथित अन्याय का शिकार—दोनों रूपों में सार्वजनिक रूप से पेश किया जा सकता है, जिससे सामाजिक सहानुभूति जगी रहे और राजनीतिक लाभ भी उठाया जा सके।
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुर्मी, पाल, मौर्य और अन्य पिछड़ी जातियों में सेंध लगाने में चुनौती मिली थी, जिसका खामियाजा उसे विपक्ष के जातीय गठबंधनों के रूप में भुगतना पड़ा। पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 को देखते हुए भाजपा सक्रिय रूप से पिछड़ों और दलितों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है—और यही समय पूजा पाल का राजनीतिक पुनर्वासन का नजरिया उभारता दिखता है।
वर्तमान में पूजा पाल का भाजपा में शामिल होना या न होना ठोस रूप से नहीं तय है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि दोनों पक्षों की वार्ता हो रही है। भाजपा जल्द ही उन्हें संगठनात्मक या सरकारी जिम्मेदारी देने की योजना बना सकती है, जैसे जिस तरह 2016 में स्वाति सिंह को राजनीतिक रूप से संवर्धित किया गया था—जिससे भाजपा ने एक महिला नेता को मजबूत मंच दिया था और समाजवादी दल में विद्रोह को टालने की कोशिश की थी।
इस पृष्ठभूमि में यह कदम न केवल राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की जातीय राजनीति में भाजपा के फेर बदल की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी हो सकता है।