
बिहार चुनाव 2025: प्राशांत किशोर बने भाजपा-एनडीए के लिए बड़ी चुनौती
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक परिदृश्य में एक नया मोड़ तब आया जब प्राशांत किशोर ने अग्रिम जातियों (forward castes) और युवाओं को लक्षित करते हुए अपनी राजनीति की रणनीति जारी की। भाजपा-नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स (NDA) अब इस जनाधार में होने वाले स्विंग वोटों के रुझान से चिंित है और उसने एक ‘काउंटर-प्लान’ तैयार किया है जिससे उन जातियों और युवाओं को साधा जाए जो पारंपरिक रूप से भाजपा-एनडीए से जुड़े रहे हैं, लेकिन प्राशांत किशोर द्वारा खींचे जा रहे असंतोष के कारण उन्होंने समीकरण बदलने शुरू कर दिए हैं।
प्राशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने हाल-फिलहाल की रैलियों और बैठकों में लगातार यह संदेश दिया है कि अब जाति या धर्म के आधार पर वोट न दें, बल्कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, रोज़गार और जीवन-स्तर को प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा है कि यदि नेता शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय व्यवस्था आदि मौलिक सेवाएँ देने में विफल रहते हैं तो जनता उनकी जवाबदेही तय कर सकती है। इसी सोच के कारण उन्होंने युवाओं और अग्रिम जातियों को अपने अभियान में शामिल किया है।
एनडीए को महसूस हो गया है कि प्राशांत किशोर का यह “फॉरवर्ड जाति + युवा केंद्रित” प्रचार उन सामाजिक वर्गों से समर्थन खींच रहा है जो कभी भाजपा-एनडीए के मजबूत वोट बैंक रहे हैं। इस लिए भाजपा-एनडीए नेताओं ने भी सक्रिय हो कर उन जिलों और विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार बढ़ाया है जहाँ अग्रिम जातियों की संख्या अधिक है और युवा मतदाता ज़्यादा हैं। प्रचार सामग्री में युवाओं की बेरोज़गारी, शिक्षा और कौशल विकास की घोषणाएँ बढ़ रही हैं; साथ ही योजनाओं का विज्ञापन भी अधिक हो गया है।
एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि अग्रिम जातियों में भाजपा-एनडीए का समर्थन अभी भी प्रतिशतों में ऊँचा है, लेकिन वहाँ असंतोष की लहर महसूस की जा रही है — विशेष रूप से उन युवा परिवारों में जहाँ शिक्षा पूरी हो जाने पर रोज़गार नहीं मिलता। इस असंतोष को प्राशांत किशोर जन सुराज पार्टी कहीं-न-कहीं उपयोग कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, प्राशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी के माध्यम से “जाति-परक राजनीति” से थोड़ा हट कर “क्लास-आधारित” या “इश्यू-आधारित” वोट बैंक तैयार करने की कोशिश की है। यह रणनीति अगर सफल होती है, तो चुनाव परिणामों में अपेक्षित झटके भाजपा-एनडीए को लग सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रीय सीटों पर जहाँ अग्रिम जातियों + युवा वोटों की संख्या निर्णायक है।
हालाँकि, NDA के लिए यह चुनौती नई नहीं है। पार्टी के नेतृत्व ने मुकाबले की तैयारी शुरू कर दी है। उम्मीदवार चयन में अग्रिम जाति प्रतिनिधित्व बढ़ाने, युवा आकाँक्षाएँ पूरी करने वाले घोषणापत्र तैयार करने और स्थानीय स्तर पर त्वरित विकास कार्यों की शुरुआत करने जैसी रणनीतियाँ देखी जा रही हैं।
इस पूरी स्थिति से यह तय लगता है कि बिहार के चुनाव 2025 सिर्फ राजनीतिक दलों के बीच सत्ता संघर्ष नहीं होंगे, बल्कि सामाजिक पहचान, युवाओं की आकांक्षाएँ और विकास की मांगों का टकराव भी होंगे। आगे आठ-दस हफ्तों में यह देखना होगा कि किसान, नौजवान, शिक्षित बेरोज़गार और अग्रिम जातियाँ किस ओर झुकती हैं — NDA या जन सुराज या महागठबंधन (Mahagathbandhan)।



