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प्रशांत किशोर से मुलाकात पर प्रियंका गांधी का बयान

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राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की मुलाकात को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। इस कथित ‘गुप्त बैठक’ के बाद विपक्षी राजनीति में नए समीकरणों की अटकलें लगाई जाने लगीं। हालांकि, इस मुलाकात को लेकर प्रियंका गांधी ने खुद सामने आकर स्थिति साफ की और कहा कि इसे अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। उनके बयान के बाद भी राजनीतिक हलकों में यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह मुलाकात आने वाले चुनावों के लिहाज से किसी बड़ी रणनीति का संकेत है।

प्रियंका गांधी ने स्पष्ट किया कि प्रशांत किशोर से उनकी मुलाकात कोई औपचारिक राजनीतिक बैठक नहीं थी और न ही इसमें किसी तरह की चुनावी रणनीति पर चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि राजनीति में अलग-अलग लोगों से मिलना कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन हर मुलाकात को सियासी गठजोड़ या बड़े फैसले से जोड़कर देखना सही नहीं है। प्रियंका का यह बयान उन अटकलों के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है, जिनमें कहा जा रहा था कि कांग्रेस एक बार फिर प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति का सहारा लेने पर विचार कर सकती है।

दरअसल, प्रशांत किशोर का नाम जब भी किसी नेता या पार्टी से जुड़ता है, तो राजनीतिक चर्चाएं तेज हो जाती हैं। इससे पहले भी वे कई चुनावों में अहम भूमिका निभा चुके हैं और उनकी रणनीतियों को लेकर उनकी पहचान एक प्रभावशाली चुनावी रणनीतिकार के रूप में बनी है। ऐसे में प्रियंका गांधी से उनकी मुलाकात को विपक्षी एकता, कांग्रेस की भविष्य की चुनावी तैयारी और संगठनात्मक बदलावों से जोड़कर देखा जा रहा था।

कांग्रेस के भीतर भी इस मुलाकात को लेकर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी को हर संभावित विकल्प पर विचार करना चाहिए, वहीं कुछ का कहना है कि कांग्रेस को अपनी पारंपरिक संगठनात्मक ताकत और जमीनी कार्यकर्ताओं पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए। प्रियंका गांधी का बयान इन अटकलों को शांत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, ताकि पार्टी के भीतर और बाहर किसी तरह का भ्रम न फैले।

कुल मिलाकर, प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी की मुलाकात ने भले ही राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया हो, लेकिन प्रियंका के स्पष्टीकरण के बाद यह साफ करने की कोशिश की गई है कि फिलहाल इसे किसी बड़े राजनीतिक बदलाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। फिर भी, भारतीय राजनीति में मुलाकातें अक्सर भविष्य की संभावनाओं के संकेत देती हैं, ऐसे में आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस चर्चा का कोई ठोस राजनीतिक असर सामने आता है या नहीं।

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