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“पहला श्राद्ध: प्रतिपदा श्राद्ध 8 सितंबर को—मुहूर्त, विधि और ज्योतिषीय महत्व”

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भगवान और पूजनीय पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए हिंदू धर्म में जो 16-दिवसीय पवित्र अवधि होती है—पितृ पक्ष—वर्ष 2025 में 7 सितंबर से प्रारंभ होकर 21 सितंबर को संपन्न होती है, जिसे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय, हिन्दू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों के शांति और मोक्ष की कामना करते हुए श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान जैसे अनुष्ठान करते हैं।

इस कर्मकांडी पध्दति के तहत, पहला श्राद्ध—प्रतिपदा श्राद्ध—8 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन श्राद्ध कर्मों के साथ-साथ तर्पण और पिंडदान जैसी आवश्यक क्रियाएँ की जाएंगी।

प्रतिपदा श्राद्ध का मुहूर्त:

श्राद्ध विधि — मुख्य क्रियाएँ:

  1. गंगाजल स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करें।

  2. संकल्प में पूर्वज का नाम, गोत्र व तिथि का उल्लेख करें।

  3. पिंडदान—चावल के गोले जिनमें तिल, घी या जौ मिलाया जाता है—को तुला पत्ते, दरभा या पवित्र आसन पर रखें।

  4. तर्पण—कलिया जल, तिल और जौ मिलाकर मंत्रों के साथ नीचे वासना—पूर्वजों को समर्पित करें।

  5. दान या ब्राह्मण भोज—संतों या ब्राह्मणों को भोजन या कपड़े दान करके पुण्य कमाया जाता है।

पितृ पक्ष का धार्मिक व ज्योतिषीय महत्व:

पितृ पक्ष और श्राद्ध का इतिहास वेद, पुराण और महाभारत जैसी धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। यह परंपरा तत्कालीन राजा करुणा के पुत्र करुणाश के उदाहरण से भी जुड़ी है, जिन्होंने अपने पूर्वजों के आत्मा को मोक्ष देने के लिए पितृ पक्ष में दान किया था।

रोचक रूप से, इस समय के साथ गुरु बृहस्पति (बृहस्पति देव) का पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे पड में प्रवास (Transit) भी हो रहा है—जो कि एक दुर्लभ और शुभ ज्योतिषीय संयोग माना जाता है। यह मिलन पितृ दोष (Pitru Dosha) निवारण, आत्मिक शांति, और परिवार-परम्परा संबंधी बंधनों में सामंजस्य लाने का “एक मात्र अवसर” बताता है।

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