Advertisement
धर्मलाइव अपडेट
Trending

प्रेमानंद महाराज बोले: हादसे से बचना ‘भगवान की कृपा

Advertisement
Advertisement

आधुनिक जीवन में जब भी कोई अनहोनी घटित होती है — जैसे सड़क हादसा, भवन की गिरी हुई संरचना, अचानक आई विपत्ति — तो लोगों के मन में अक्सर यह प्रश्न उठते हैं: क्या यह भगवान की विशेष कृपा थी जो किसी को बचा लेती है, और जो मर जाते हैं, क्या वे भगवान की कृपा से वंचित हैं? इस विवादास्पद और भावनात्मक उलझन को लेकर प्रेमानंद महाराज ने एक भक्त के प्रश्न का जवाब देते हुए कुछ गहरे और चुनौतीपूर्ण विचार साझा किए हैं।

महाराज का मत है कि हादसे से बच जाना भगवान की विशेष कृपा नहीं होती, बल्कि यह भाग्य और प्रारब्ध (पूर्वनिर्धारित कर्मफल) का परिणाम है। यदि हम यह कहें कि केवल भगवान की कृपा से ही कोई बचा, और जिन्होंने मर गए, उन पर कृपा नहीं थी — तो यह भगवान के प्रेम को पक्षपाती ठहराना होगा। प्रेमानंद महाराज यह स्पष्ट करते हैं कि भगवान का प्रेम सभी के लिए समान है — वह किसी पर विशेष रूप से कृपा नहीं दिखाते।

उन्होंने कहा कि जिनकी मृत्यु हुई है, उनकी निर्धारित आयु समाप्त हो चुकी थी — यह उनकी नियति थी। वहीं जो लोग बच गए, वे अपने कर्मों, बची हुई आयु और भाग्य के कारण बचे। इस तरह, दुर्घटना में बचने या मरने को केवल “कृपा / अनकृपा” जोड़ना सही दृष्टिकोण नहीं है।

प्रेमानंद महाराज इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि ऐसे समयों में हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि किस पर कृपा हुई और किस पर नहीं। बल्कि, हमें “भगवान का नाम जप” करने में अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। क्योंकि उनका मानना है कि नाम जप — धर्म के साधन और भक्ति का मार्ग — हमारी असली शरण और ताकत है।

वर्तमान समय में यह दृष्टिकोण किसी-न-किसी रूप से सांप्रदायिक और आध्यात्मिक चर्चा को छू रहा है। समाज में अक्सर लोग दुर्घटनाओं या अनहोनी को “संयोग” कहकर टाल देते हैं या “भोले-भाले भगवान की दूसरी योजना” कहकर जोड़ देते हैं। प्रेमानंद महाराज का यह संदेश उन विचारों को चुनौती देता है — कि जीवन और मृत्यु दोनों ही योजनाबद्ध हैं, और हमारे कर्म, भाग्य व नियति की भूमिका महत्वपूर्ण है।

हालांकि, इस तरह के विचार धर्मान्तर या मान्यताओं के आधार पर अलग-अलग स्वीकार किए जाते हैं। किसी व्यक्ति का यह विश्वास हो सकता है कि भगवान की विशिष्ट कृपा ही किसी को बचाती है — और जो मर जाते हैं, उन्हें भी उसी तरह की दिव्य योजना का हिस्सा माना जाना चाहिए। इनके बीच संतुलन और संवाद की ज़रूरत है, ताकि ऐसी दार्शनिकतम बातों को व्यक्तिगत आस्था और सामाजिक विवेक दोनों से समझा जाए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
YouTube
LinkedIn
Share