राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बयान “Indian economy is dead” को समर्थन देते हुए भाजपा सरकार पर पाँच बड़े आर्थिक आरोप लगाए:
- अदानी–मोदी गठजोड़ ने अर्थव्यवस्था खत्म कर दी
- नोटबंदी और दोषपूर्ण जीएसटी से आर्थिक तंत्र ध्वस्त हो गया
- “Assemble in India” नीति पूरी तरह नाकाम
- MSMEs बिखर गए / खत्म हो गए
- किसानों को कुचल दिया गया और बेरोजगारी चरम सीमा पर
राहुल गांधी ने इन आरोपों को भारतीय युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली कार्रवाइयों के रूप में पेश किया।
लेकिन NDTV की तथ्य‑जांच के अनुसार, ये आरोप कई मायनों में तथ्यों के विपरीत पाए गए हैं:
- GDP वृद्धि: FY 2024‑25 में GDP 6.4% रही, और अगले वर्ष यह 6.3–6.8% तक रहने का अनुमान है। GST संग्रह पिछले वर्ष से 9.4% की वृद्धि के साथ ₹22 लाख करोड़ से पार हो गया; जो 5 सालों में लगभग दोगुना हुआ है।
- मैन्युफैक्चरिंग (Assemble in India): S&P ग्लोबल के अनुसार जुलाई में PMI 59.2 रहा — सालों में सबसे तेज़ वृद्धि; यह दिखाता है कि असेंबलिंग और निर्माण में गति बढ़ी है, राहुल गांधी की धारणा के विपरीत।
- MSME निर्यात और योगदान: 2020 से 2025 के बीच MSME निर्यात तीन गुना बढ़कर ₹12.39 लाख करोड़ हुआ। निर्यातक MSME की संख्या बढ़कर 1.7 लाख से ऊँची हुई और MSME अब GDP का 30% से अधिक हिस्सा देते हैं।
- किसान आय और वृद्धि: पिछले दशक में कृषि से आय में 5% वार्षिक वृद्धि, FY 2026 में 3.5% ग्रोथ अनुमानित। सरकार की नीतियाँ सक्रिय हैं और सुधार जारी हैं; किसानों की समस्याओं को नकारा नहीं जा रहा पर “कुचला गया” कहना सही नहीं है।
- रोजगार में सुधार: 2016–2023 के बीच लगभग 17 करोड़ नई नौकरियां बनीं, रोजगार स्तर में 36% वृद्धि। 2025 में नौकरियों में अनुमानित 9% वृद्धि; आईटी सेक्टर की भर्ती 15% बढ़ी है। “कोई नौकरी नहीं है” कहना अतिशयोक्ति है।
इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों की वास्तविकता व्यापक डेटा और आर्थिक संकेतकों से मेल नहीं खाती।
इस बीच, कांग्रेस के भीतर भी विभेद दिखे—जहां राहुल गांधी ने ट्रम्प के बयान का समर्थन किया, वहीं वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बताते हुए इसे “Trump is living in a delusion” कहा।
कुल मिलाकर, राहुल गांधी के आरोपों की गहराई से जांच करने पर तथ्य एक अलग तस्वीर प्रस्तुत करते हैं: निश्चित रूप से सुधार की गुंजाइश है और चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन “मृत अर्थव्यवस्था” का चित्र कठोर अतिशयोक्ति के अलावा कुछ नहीं।