22 अप्रैल 2025 को पहलगाम के पास हुई आतंकी घटनाओं के ठीक बाद, केंद्र सरकार ने पाकिस्तान मूल की सभी पाकिस्तानी नागरिकों के विज़ा रद्द कर दिए और 48 घंटे के भीतर उन्हें भारत छोड़ने का आदेश दिया।
इस फैसले के तहत 63 वर्षीया रकशंदा राशिद, जो जम्मू स्थित तलाब खटिकान क्षेत्र की निवासी थीं और लंबे समय से भारत में LTV (Long‑Term Visa) पर रह रही थीं, को 29 अप्रैल को अतरी‑वाघा बॉर्डर के ज़रिए पाकिस्तान भेज दिया गया था।
हाई कोर्ट की कार्रवाई:
रकशंदा की बेटी द्वारा जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। 6 जून को न्यायालय ने केंद्र सरकार को एक एस ओ एस आदेश जैसे निर्देशन देते हुए रकशंदा को भारत वापस लाने को कहा। न्यायाधीश राहुल भारती ने कहा कि मानवाधिकार अत्यंत पवित्र हैं और संदिग्ध परिस्थितियों में तत्काल राहत मिलना ज़रूरी है।
अदालत ने 1 जुलाई 2025 की अगली सुनवाई तक सरकार से इस दिशा में अमल रिपोर्ट पेश करने को कहा था।
हालाँकि केंद्र ने इस आदेश के विरुद्ध Letters Patent Appeal दायर की और फिलहाल हाई कोर्ट ने रिपैट्रियेशन आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।
व्यक्तिगत पृष्ठभूमि:
रकशंदा राशिद पाकिस्तान से आकर लगभग 38 वर्षों से भारत में रह रही थीं। उन्होंने जम्मू में एक भारतीय नागरिक से विवाह किया और उन्हें दीर्घकालिक वीज़ा प्रदान किया गया था। वे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त हैं और पाकिस्तान में उनकी देखभाल के लिए कोई नहीं है। उनके पति व बच्चे भारत में बसे हुए हैं।
विश्लेषण:
यह मामला सामान्य विज़ा नीतियों से इतर, संवेदनशील परिस्थितियों में माना जा रहा है क्योंकि रकशंदा लंबे समय से भारत की नागरिक की तरह रह रही थीं।
आईसीयू-केंद्र विवाद के बीच मानवाधिकार एवं पारिवारिक पुनर्मिलन की भावना हाई कोर्ट ने प्राथमिकता दी।
केंद्र सरकार ने कहा है कि यह निर्णय एक विशेष परिस्थिति पर आधारित है और इसका कोई वैधानिक उद्देश्य नहीं है