1915-20 के दशक में जब भारत में सामाजिक-राजनैतिक आंदोलनों की हवा चल रही थी, उसी समय नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की पहली शाखा की नींव पड़ी। आज से लगभग 100 साल पहले की यह कहानी है — संघर्ष की, आशा की और आत्मनिर्भरता की।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की प्रेरणा से आरंभ हुई शाखा की शुरुआत व्यायाम, अखाड़ों और शारीरिक कसरतों से हुई। योग-शरीरिक प्रशिक्षण के बाद विचार-विमर्श का सिलसिला भी चलता था ताकि स्वयंसेवक सिर्फ शारीरिक रूप से सुदृढ़ न हों, बल्कि उनकी बौद्धिक क्षमता भी विकसित हो।
सबसे पहले शाखा का स्थान खोजने की ज़रूरत पड़ी। ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ लगातार मिलना हो सके। वह जगह मिली “मोहिते का वाड़ा” — नागपुर, व्यायामशाला के पास, एक खंडहर की तरह पड़ा, जहाँ अधिकांश लोग मानते थे कि वहाँ भूत रहते हैं।
इस वाड़े की शुरुआत कुछ विरोध और डर के बीच हुई। मोहिते नामक व्यक्ति ने यह संपत्ति गिरवी रखी थी, और वह धीरे-धीरे बर्बाद होती चली गई। डॉ. हेडगेवार के एक साथी, भाऊजी कावरे, पत्नी की मृत्यु के बाद वहाँ रहने लगे थे और उन्होंने साधारण लेकिन जरूरी सुझाव दिया: खंडहर वाड़े को स्वयंसेवकों द्वारा साफ-सफाई कर बैठने की जगह बनाया जाए।
स्वयंसेवकों को उस जगह में एक तहखाना भी मिला, जिसमें दो कमरे थे — इन्हीं कमरों में शाखा की बैठकें होती रहीं। यह शाखा दो साल तक मोहिते के वाड़े में कायम रही। लेकिन साहूकार ने जब शाखा की गतिविधियों के बारे में जाना, तो उसने शाखा पर रोक लगाई। मोहिते के वारिसों ने भी कानूनी लड़ाई की, पर अंततः 1930 में साहूकार ने वह मुक़दमा जीत लिया।
इस बीच डॉ. हेडगेवार जेल में गए, तो शाखा की ज़िम्मेदारी राजा साहब लक्ष्मण राव भोंसले को सौंपी गई। उन्होंने शाखाएं अपने हाथीखाने में स्थापित करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन राजा साहेब के मृत्यु के बाद यह सिलसिला नहीं चल सका। तब मंदिर तुलसी बाग-वाली जमीन पर शाखा लगाने की कोशिश की गई, लेकिन इतरा-परिवारों का विरोध हुआ। फिर भी नागपुर में शाखाओं की संख्या बढ़ती गई।
डॉ. हेडगेवार की मृत्यु के कुछ महीनों बाद, मोहिते का वाड़ा साहूकार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने से सार्वजनिक विवाद में आया। संघ स्वयंसेवकों ने मिलकर साहूकार की सहायता की और वह वाड़ा संघ के नाम कर दिया गया। आज यह मोहिते का वाड़ा संघ के लिए तीर्थ-समान है और नागपुर में संघ मुख्यालय का एक प्रमुख हिस्सा है।