भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पाकिस्तान से संबंधित मुद्दों पर भारत के रुख को लेकर एक बार फिर सख्त और स्पष्ट संदेश दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत ने कभी भी पाकिस्तान से संबंधित मामलों में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया है, न पहले और न आगे कभी करेगा। यह टिप्पणी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दिए गए उन पुराने बयानों की पृष्ठभूमि में आई है, जिनमें उन्होंने कहा था कि भारत ने उनसे कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए अनुरोध किया था।
जयशंकर ने कहा कि,
“अगर आज कोई दावा करता है कि भारत ने मध्यस्थता की बात की थी, तो वह गलत है। हमने कभी किसी को तीसरे पक्ष के तौर पर स्वीकार नहीं किया।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की पाकिस्तान नीति पूरी तरह द्विपक्षीय (bilateral) है और यह रुख दशकों से चला आ रहा है। भारत-पाक के बीच किसी भी मुद्दे को बातचीत से हल करने की नीति भारत की पुरानी और ठोस कूटनीतिक स्थिति रही है।
डोनाल्ड ट्रम्प पर तंज: ‘ऐसा राष्ट्रपति पहले नहीं देखा‘
जयशंकर ने डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल की तुलना अमेरिका के अन्य राष्ट्रपतियों से करते हुए कहा कि
“हमने किसी और अमेरिकी राष्ट्रपति को विदेश नीति को इतने सार्वजनिक तरीके से संचालित करते हुए नहीं देखा।”
उनका इशारा था कि ट्रम्प अक्सर अपनी विदेश नीति की घोषणाएं सार्वजनिक मंचों से सीधे और बिना औपचारिक प्रक्रिया के करते थे, जो परंपरागत अमेरिकी कूटनीति से हटकर था।
भारत की रणनीतिक संप्रभुता से कोई समझौता नहीं
जयशंकर ने यह भी रेखांकित किया कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता (strategic autonomy) एक अहम सिद्धांत है, और कोई भी देश यदि भारत के किसानों, छोटे उत्पादकों, या आर्थिक संप्रभुता को प्रभावित करने की कोशिश करता है, तो भारत उसका विरोध करेगा। उन्होंने कहा कि यह आत्मनिर्भर भारत की नीति का एक अभिन्न अंग है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत का स्थायी रुख
भारत का यह रुख नया नहीं है। 1972 के शिमला समझौते में भी यह स्पष्ट किया गया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच सभी विवाद द्विपक्षीय तरीके से ही हल किए जाएंगे और किसी तीसरे पक्ष की भूमिका स्वीकार नहीं की जाएगी। इसके बाद से भारत की हर सरकार ने इस नीति को आगे बढ़ाया है, चाहे वह कांग्रेस की हो या एनडीए की।