अमेरिका ने हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के करीबी सहयोगी सर्जियो गोर को भारत में अपना राजदूत बनाकर दक्षिण और मध्य एशिया के लिए विशेष दूत भी नामित किया है। भारत सरकार ने इस निर्णय का औपचारिक स्वागत किया है, लेकिन इस पर अधिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर से इस नियुक्ति पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उनका मात्र इतना जवाब था कि “मैंने इसके बारे में पढ़ा है”। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि राजनयिक दृष्टिकोण से अन्य देशों की ऐसी नियुक्तियों पर सार्वजनिक टिप्पणी करने से बचना ही उनकी नीतिगत प्राथमिकता है।
अमेरिकी सीनेट से इस नियुक्ति को अभी मंजूरी मिलनी बाकी है। यह कदम तब उठाया गया है जब भारत-यूएस संबंध तनावपूर्ण हैं—ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत पर लागू किए गए बढ़ाए गए आयात शुल्क और रूस से तेल खरीद को लेकर असहमति के बीच। यह दोहरा पद—राजदूत और विशेष दूत—उभरते राजनीतिक और क्षेत्रीय पहलुओं की जटिलताओं को दर्शाता है।
विशेषज्ञों ने इस नियुक्ति को तीन मायनों से देखा है—एक, गोर को ट्रम्प का बेहद भरोसेमंद सहयोगी माना जाता है, दो, इससे द्विपक्षीय बातचीत की गहराई और स्थिरता में सुधार हो सकता है, और तीन, भारत-पाकिस्तान मध्यस्थता जैसे संवेदनशील विषय पर अमेरिका की भूमिका को लेकर भारत में चिंताएं बढ़ रही हैं। वहीं, भारत ने अतीत में भी ऐसे प्रयासों का विरोध किया है जहाँ अमेरिका ने कश्मीर जैसे द्विपक्षीय मुद्दों में स्वयं को एक मध्यस्थ रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की हो।
इस पूरे परिदृश्य में, जनता और राजनयिक विचार-विमर्श यह देखने के लिए उत्सुक है कि गोर की भूमिका किस हद तक भारत-अमेरिका संबंधों में अर्थपूर्ण संवाद और रणनीतिक गहराई ला पाएगी।