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बिहार चुनाव 2025: बिहार में सीट-बंटवारे के बाद BJP ने सृजित किया उस ताकत का रुख

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बिहार में 2025 की विधानसभा चुनावी तैयारियों के बीच राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने सीटों का बंटवारा फाइनलिज़ कर लिया है — और इस फैसले ने पार्टी शक्ति संतुलन, गठबंधन की दिशा और दलित राजनीति पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। एनडीए सूत्रों की जानकारी के अनुसार, बीजेपी और जदयू को समान 101-101 सीटें दी गई हैं, जबकि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें आवंटित की गई हैं। इसके अलावा, अन्य छोटे सहयोगी दलों—HAM और RLM—को 6-6 सीटें देने का निर्णय हुआ है।

इस सीट-बंटवारे की खास बात यह है कि पहली बार NDA में ऐसा स्वरूप चुना गया है जहाँ बीजेपी ने जदयू के समकक्ष स्थान प्राप्त किया है। यानी अब जदयू वह ‘वरिष्ठ सहयोगी’ नहीं माना जाएगा जैसा कि पहले होता रहा। इस बदलाव से यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि बीजेपी बिहार में अपनी नेतृत्व की भूमिका और दायित्व बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रही है।

चिराग पासवान की भूमिका इस समझौते में अहम रही है। शुरुआत में उन्होंने 40 सीटों तक की मांग की थी, लेकिन अंत में उन्हें 29 सीटें ही दी गईं। इस मसले पर कई दौर की बातचीत हुईं, और अंततः दोनों पक्षों ने मध्यमार्ग खोजा।

राजनीतिज्ञ इस सीट-फॉर्मूले को NDA के आंतरिक समीकरण की क्रांति मान रहे हैं। अब तक जदयू को अधिकतम सीटें मिलती थीं और वह गठबंधन की धुरी बनी रहती थी। लेकिन इस बार वह भूमिका कमज़ोर होती नजर आ रही है। बीजेपी ने इस मौके का उपयोग करते हुए अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश की है।

विपक्ष ने इस फैसले पर तीखे आरोप लगाए हैं। आरजेडी के नेता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि यह स्पष्ट संकेत है कि बीजेपी जल्द ही जदयू को खारिज कर उसके स्थान खुद लेगी। उन्होंने कहा कि सीट बंटवारे की यह संरचना बीजेपी की अगली योजना को दिखाती है — अर्थात् जदयू को निष्कासित करना और मुख्यमंत्री पद स्वयं लेना।

जदयू और अन्य सहयोगी दलों के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण है। वे इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए बाध्य दिखते हैं, लेकिन उनकी राजनीति और आत्मस्वाभिमान पर यह हमला भी हो सकता है। यदि गठबंधन में किसी तरह की अनबन या टूट हो जाए, तो चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।

अब यह देखने की बात होगी कि जनता इस सीट बंटवारे को किस दृष्टि से देखती है। क्या उन्हें लगेगा कि बीजेपी ने जाति-समूहों और राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखकर यह फॉर्मूला तैयार किया है? या इसे एक ज़बरदस्त शक्ति हस्तक्षेप माना जाएगा? अगले कुछ दिन ही तय करेंगे कि इस रणनीति का चुनावी प्रभाव कितना असरदार साबित होगा।

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