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पश्चिम बंगाल में Special Intensive Revision (SIR) विवाद

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पश्चिम बंगाल में विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया शुरू हुई है — इसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना, डुप्लिकेट या संदिग्ध नाम हटाना और केवल वैध वोटरों को सूची में रखना है।

लेकिन यह प्रक्रिया राज्य में सियासी जंग का विषय बन चुकी है।

जहां चुनाव आयोग (या इसके समर्थक दल) इसे लोकतांत्रिक सफाई का कदम बता रहे हैं, वहीं राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी Trinamool Congress (TMC) इसे “भेदभावपूर्ण, त्वरित और असंवेदनशील” बता रही है — उनका दावा है कि इससे असली वोटरों को सूची से हटाया जा सकता है, विशेष रूप से अल्पसंख्यक एवं पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व प्रभावित होगा।

राजनीतिक दलों का रुख — आरोप-प्रत्यारोप

TMC की ओर से यह कहा जा रहा है कि SIR चुनाव से ठीक पहले लागू किया गया है, ताकि वोटर सूची में हेरफेर हो सके। उनकी चिंता है कि प्रक्रिया जल्दबाज़ी और कम समय में हो रही है — जिससे सामान्य मतदाता, खासतौर पर ग्रामीण या पिछड़े इलाकों में, अपने मतदाता अधिकारों से वंचित रह सकते हैं।

दूसरी ओर, Bharatiya Janata Party (BJP) व समर्थक तर्क दे रहे हैं कि बंगाल में मतदाता सूची में डुप्लीकेट, फर्जी या घुसपैठियों के नामों की भरमार है — और SIR इस समस्या का समाधान है। भाजपा का कहना है कि इस प्रक्रिया के बाद ही चुनाव निष्पक्ष हो सकते हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि असल मुद्दा सिर्फ मतदाता सूची नहीं — बल्कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले वोट बैंक में बदलाव, सामुदायिक समीकरण और जातीय-धार्मिक संवेदनशीलता भी है।


जमीन पर असर — BLO विरोध, प्रदर्शन व डाटा-प्रक्रिया में दिक्कतें

SIR की प्रक्रिया के दौरान बूथ-लेवल ऑफिसर्स (BLO) को मतदाता फॉर्म घर-घर पहुँचाने, डिजिटाइजेशन व सत्यापन का काम मिले। लेकिन कई BLO इस भारी काम और असुविधाओं को लेकर प्रदर्शन कर चुके हैं।

कई मतदाताओं ने शिकायत की है कि SIR फॉर्म तथा डिजिटलीकरण संबंधी निर्देश स्पष्ट नहीं थे। कई ने फॉर्म भरने में त्रुटियाँ बताई हैं, जिससे डर है कि उनका नाम मतदाता सूची से हट जाएगा।

कुछ जिलों और सीमाई क्षेत्रों में मतदाता-संख्या, पहचान व आबादी के आंकड़ों को लेकर भी सवाल उठे हैं — जिससे प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर शक गहराया है।


आगामी eleitoral-परिप्रेक्ष्य : 2026 विधानसभा चुनाव, रणनीति और भय

चूंकि अगले साल (2026) बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं, राजनीतिक दलों के लिए मतदाता सूची की शुद्धता और वोटर-बेस की संरचना अहम है। SIR के परिणामों से चुनावी समीकरण बदल सकते हैं — जो प्रत्याशियों, दलों और मतदाताओं की स्थिति को प्रभावित करेगा।

विश्लेषकों के अनुसार, SIR के बाद मतदाता सूची में हुए बदलाव — यदि पारदर्शी व निष्पक्ष नहीं रहे — तो यह कई समुदायों, खासकर अल्पसंख्यक व पिछड़े वर्गों में अविश्वास पैदा कर सकता है।

वहीं दूसरी ओर, अगर प्रक्रिया साफ-सुथरी हुई, तो यह झूठे व डुप्लीकेट वोटरों को हटाकर चुनावों की विश्वसनीयता बढ़ा सकती है — और मतदाता-यातायात, मतदान की पारदर्शिता, लोकतांत्रिक प्रणाली की मजबूती की दिशा में भी कदम हो सकता है।

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