
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत एक बार फिर राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गई है। इस बार मामला नेहरू की उन ऐतिहासिक चिट्ठियों से जुड़ा है, जिन्हें कभी इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संग्रहालयों को सौंपा था। लेकिन अब सोनिया गांधी द्वारा इन्हें प्रधानमंत्री संग्रहालय (पीएम म्यूज़ियम) को न सौंपने को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।
बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री संग्रहालय में देश के सभी प्रधानमंत्रियों की यादों और दस्तावेजों को संजोया जा रहा है। इसी क्रम में नेहरू से जुड़ी चिट्ठियों की मांग भी की गई थी। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन चिट्ठियों को संग्रहालय को सौंपने से इनकार कर दिया है, जिसके पीछे उन्होंने कोई स्पष्ट कारण सार्वजनिक रूप से नहीं बताया।
इस पर भाजपा ने सवाल उठाए हैं कि जब ये चिट्ठियां राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में पहले ही दान की जा चुकी हैं, तो उन्हें सार्वजनिक संग्रहालय में रखने में आपत्ति क्यों है? वहीं कांग्रेस का कहना है कि यह मुद्दा सिर्फ संग्रह का नहीं, बल्कि विरासत के सम्मान और प्रस्तुति की नीयत से जुड़ा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह टकराव सिर्फ दस्तावेजों का नहीं, बल्कि इतिहास के नियंत्रण को लेकर है—जहां एक पक्ष नेहरू को उनकी पूरी गरिमा के साथ दिखाने का पक्षधर है, वहीं दूसरा पक्ष उन्हें बाकी प्रधानमंत्रियों की कतार में खड़ा करना चाहता है।
यह मामला आने वाले समय में और तूल पकड़ सकता है, क्योंकि इसमें नेहरू परिवार की विरासत, राजनीति और इतिहास तीनों आपस में उलझते नजर आ रहे हैं।