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पंजाब में एक माह में 241 पराली-जलाने की घटनाएँ

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पंजाब में फसलों की कटाई के बाद पराली जलाने (stubble burning) की घटनाओं ने फिर से चिंता का विषय बना लिया है। राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Punjab Pollution Control Board – PPCB) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार 15 सितंबर से 18 अक्टूबर 2025 के बीच लगभग 241 पराली-जलाने की घटनाएँ दर्ज की गई हैं।
इनमें सबसे अधिक संख्या Tarn Taran जिले की रही जहाँ 88 घटनाएँ सामने आईं, इसके बाद Amritsar जिले में 80-के करीब मामलों की पुष्टि हुई।

यह स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि इस प्रकार की पराली-जलाने की गतिविधियाँ सीधे तौर पर वायु गुणवत्ता को प्रभावित करती है और विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तरी भारत में ‘धुँँआ-कोहरे’ का कारण बनती हैं।
हालाँकि, यदि पिछले वर्षों के आंकड़ों से तुलना की जाए तो यह संख्या उस तरह की चरम वृद्धि नहीं दिखाती — उदाहरण के लिए, 2024 व 2023 की समान अवधि में इस इलाके में क्रमशः 1,348 तथा 1,407 घटनाएँ दर्ज की गई थीं।

परंतु बावजूद इसके, इस वर्ष की शुरुआत के आंकड़े यह दिखाते हैं कि राज्य में पराली-जलाने की प्रवृत्ति पूरी तरह नियंत्रित नहीं हुई है। अधिकारियों का कहना है कि कटाई के तुरंत बाद अगले रबी मौसम की फसल बोने का समय बहुत सीमित होता है, इस कारण कई किसानों को जल्दी में खेत साफ़ करने के लिए यह विकल्प अपनाना पड़ जाता है।

राज्य सरकार-प्रशासन की ओर से भी कार्रवाई तेज़ है — जिले-स्तर पर ‘लाल प्रविष्टि’ (red entry) जोड़ने, एफआईआर दर्ज करने और जुर्माना लगाने जैसी पहलें की जा रही हैं। उदाहरण के लिए, 113 मामलों में अब तक लगभग ₹5.60 लाख के पर्यावरणी जुर्माने लगाए जा चुके हैं, जिनमें से करीब ₹4.15 लाख वसूल किए गए हैं।
इसके अलावा, उन किसानों पर जो पराली जलाते पाए गए हैं उन्हें सरकारी कल्याण योजनाओं से वंचित करने जैसे कठोर कदम भी उठाए गए हैं।

विश्लेषण करें तो, यह एक दो-पहिया समस्या है: एक ओर खेती-प्रचलन एवं समय-सीमाएँ किसानों को पराली जलाने के लिए प्रेरित करती हैं, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण-प्रदूषण, फसल-चक्र प्रबंधन व सामाजिक जिम्मेदारी का प्रश्न खड़ा होता है। इससे यह महसूस होता है कि तकनीकी विकल्प जैसे क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट मशीनें (CRM machines) और समय-नियोजन (timing) को और बेहतर बनाना होगा।

विशेष रूप से Tarn Taran तथा Amritsar जैसे जिलों में सक्रियता बढ़नी चाहिए क्योंकि वहाँ मामलों की संख्या अधिक है। स्थानीय प्रशासन, कृषि विभाग और पर्यावरण विभाग को मिलकर किसानों को अल्टरनेटिव तकनीक, आर्थिक सहायता व समय-प्रबंधन में सहयोग देना होगा।

समग्र रूप से कहा जा सकता है कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाएँ कमी की ओर जरूर हैं, लेकिन अभी भी पर्याप्त नियंत्रण नहीं हुआ है। यदि इस प्रवृत्ति को समय रहते नहीं रोका गया तो आने वाले महीनों में वायु-प्रदूषण की स्थिति अधिक गंभीर हो सकती है।

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