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दोबारा गोविंदा की पत्नी नहीं बनना चाहतीं सुनीता आहूजा, बोलीं

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बॉलीवुड के चर्चित दंपति में शुमार गोविंदा और उनकी पत्नी सुनीता आहूजा ने हाल ही में अपनी शादी-जिंदगी को लेकर काफी खुलकर बातें की हैं। हालाँकि वे 1987 में शादी के बंधन में बंध चुके हैं, लेकिन सुनीता ने जो हालिया बयान दिया है, वह बेहद स्पष्ट और सीधे हैं।

सुनीता ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब उनसे पूछा गया कि क्या वे अगले जन्म में गोविंदा को अपना पति बनाना चाहेंगी, तो उनका जवाब रहा — “मुझे नहीं चाहिए।” उन्होंने स्पष्ट कहा कि गोविंदा बहुत अच्छे बेटे और भाई हैं, लेकिन अच्छे पति नहीं।

उन्होंने आगे कहा कि जब इंसान का एक निश्चित उम्र हो जाती है, और वह गलतियाँ करता है, तो वह शोभा नहीं देता — खासकर तब जब उसके पास एक “सुंदर परिवार” हो। उन्होंने माना कि जवानी में इंसान गलतियाँ करता है (और उन्होंने खुद भी की हैं), लेकिन अब समय आ गया है कि सोच-समझ कर कदम उठाना चाहिए।

सुनीता ने यह भी बताया कि उनके और उनके बेटे के बीच बहुत घनिष्ठ रिश्ता है। उन्होंने कहा कि उनके जीवन में दोस्त नहीं हैं, बल्कि उनका भरोसा सिर्फ अपने बच्चों पर है — “मुझे ना, मैं दोस्ती में यकीन नहीं रखती।”

उनका मानना है कि किसी स्टार की पत्नी बनने के लिए एक महिला को बहुत मजबूत होना पड़ता है, दिल पत्थर सा बनाना पड़ता है। उन्होंने कहा: “मैंने यह समझने में 38 साल लग गए। जवानी में समझ नहीं आया था।”

तीन दशक से अधिक समय हो गया है जब सुनीता और गोविंदा ने शादी की थी — 1987 में एक गुपचुप तरीके से शादी।


विश्लेषण एवं पृष्ठभूमि:
यह बयान मनोरंजन उद्योग में परिवार-जीवन और ज़ागरुकता की दिशा में एक संकेत-चिन्ह लगाता है। जब एक अभिनेत्री इतनी स्पष्टता से कहती है कि वह “पति” के रूप में वर्तमान साथी को अगले जन्म में चुनना भी नहीं चाहेंगी, तो यह दिखाता है कि रिश्तों में सिर्फ पारंपरिक भूमिका-आशाएँ ही नहीं रह गई हैं — बल्कि व्यक्तिगत संतुष्टि, आत्म-स्वर एवं गरिमा महत्वपूर्ण हो गई है।

इसका असर यह है कि रिश्तों का स्वरूप अब बदल रहा है — जहाँ पहले “पति-पत्नी” की परिभाषा सामाजिक अपेक्षाओं पर टिकी थी, आज वहीं परिभाषा व्यक्तिगत निर्णय, सम्मान और आत्म-सम्मान पर आधारित होती जा रही है। सुनीता की यह टिप्पणी इस बदलाव की प्रतिध्वनि है।

इसके साथ ही, यह बात महत्वपूर्ण है कि उन्होंने यह कहा कि उनका बेटा और परिवार उनके लिए प्राथमिकता है। यह परंपरागत विचारों से कुछ हटकर है जहाँ अक्सर रिश्तों में पति-पत्नी की भूमिका ही प्रमुख मानी जाती रही है।

उनके इस बयान से मीडिया और जन-सामान्य में नई चर्चाएँ उठ सकती हैं — जैसे: शादी के बाद साथी-चयन, की अपेक्षाएँ, निजी संतुष्टि, और विवाह के बाद व्यक्तिगत पहचान।

इसके आलावा, यह भी देखा जाना चाहिए कि इस प्रकार की खुली बातें — जहाँ एक महिला अपने साथी को “अच्छा पति नहीं” कहती है — बॉलीवुड में विरल होती सी दिखती हैं। इसलिए सुनीता का यह बयान न सिर्फ उनके व्यक्तिगत अनुभव की अभिव्यक्ति है, बल्कि एक बड़े सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में भी अर्थ रखता है।

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