
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने भारत में शरणार्थी के रूप में रहने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहाँ कोई भी व्यक्ति बिना किसी वैध कानूनी प्रक्रिया के आकर रह सके।”
यह मामला एक श्रीलंकाई तमिल व्यक्ति से जुड़ा है, जिसने दावा किया कि वह अपने देश में उत्पीड़न का शिकार हुआ और अब भारत में सुरक्षा चाहता है। उसने भारत सरकार से शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की थी।
🔍 सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा:
“भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और इसे अपनी सीमाओं और आव्रजन नीतियों को नियंत्रित करने का अधिकार है। यह कोई खुला दरवाजा नहीं है जहाँ कोई भी प्रवेश कर सकता है।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि इस प्रकार की याचिकाओं को मंजूरी दी जाए, तो यह न केवल भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, बल्कि इससे अवैध आप्रवास को भी बढ़ावा मिलेगा।
⚖️ सरकार का पक्ष:
भारत सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों ने दलील दी कि याचिकाकर्ता के पास कोई वैध दस्तावेज या कानूनी आधार नहीं है जिससे उसे शरणार्थी का दर्जा दिया जा सके। इसके अलावा, श्रीलंका के हालात अब ऐसे नहीं हैं कि वहां से आने वाले हर नागरिक को भारत में शरण दी जाए।
🌐 अंतरराष्ट्रीय संदर्भ:
भारत शरणार्थियों को लेकर कोई विशेष कानून नहीं रखता, और यूएन रिफ्यूजी कन्वेंशन 1951 का भी हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। ऐसे में किसी भी विदेशी नागरिक को भारत में शरण देना पूरी तरह सरकार की नीति और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
📌 निष्कर्ष:
इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत की सीमाओं और शरण नीति को लेकर कोई ढील नहीं दी जा सकती। यह निर्णय उन विदेशी नागरिकों के लिए संकेत है जो बिना वैध प्रक्रिया के भारत में बसने का प्रयास करते हैं।