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स्वामी चैतन्यानंद मामले में नया मोड़

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स्वामी चैतन्यानंद के यौन शोषण (sexual harassment) मामले में एक और संवेदनशील खुलासा सामने आया है। पुलिस ने इस मामले का एक महत्वपूर्ण आरोपी सहयोगी हरी सिंह कोपकोटी को गिरफ्तार कर लिया है। हरी सिंह पर गंभीर आरोप हैं कि उसने पीड़िता के पिता को फोन पर धमकी दी थी और उन्हें केस वापस लेने पर मजबूर किया था। पुलिस पूछताछ के दौरान इस बिंदु को स्वीकार भी किया गया है।

पुलिस के मुताबिक, 14 सितंबर 2025 को पीड़िता के पिता को अज्ञात नंबर से कॉल आया था। कॉल करने वाले ने कहा था कि यदि वे शिकायत वापस नहीं लेंगे तो उन्हें ‘प्रतिकार’ भुगतना पड़ेगा। इस धमकीपूर्ण कॉल की पड़ताल की गई और कॉल ट्रेस कर उसकी पहचान हरी सिंह के रूप में हुई। आरोपी उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले का निवासी है, और दिल्ली पुलिस ने उसे उसके घर से गिरफ्तार कर पूछताछ के लिए दिल्ली बुलाया।

हरी सिंह ने पूछताछ में स्वीकार किया कि वह स्थानीय निकाय की नौकरी करता है और पिछले वर्ष उसका संपर्क स्वामी चैतन्यानंद से हुआ था। उसने यह भी माना कि स्वामी चैतन्यानंद के आदेश पर ही उसने पीड़िता के पिता को फोन किया ताकि वह शिकायत वापस ले लें। पुलिस ने धमकी देने में इस्तेमाल मोबाइल फोन जब्त किया है और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 232 तथा 351(2) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

इस बीच, पुलिस ने स्वामी चैतन्यानंद को SRISIIM ले जाकर उसके कार्यालय और कमरे की भी छानबीन की है। दफ्तर और ठहरने वाले कमरे में तलाशी ली गई और कई अहम साक्ष्यों की उम्मीद जताई जा रही है। मोबाइल फोन सहित अन्य सामग्री ज़ब्त की गई है, ताकि मामले की गहन जांच की जा सके।

जांच अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की धमकियों और दबावों के पीछे मुख्य मकसद न्याय व्यवस्था को प्रभावित करना है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह मामला गहरे सुनियोजित उत्पीड़न और नाजायज़ दबाव का एक उदाहरण होगा। पुलिस इस कड़ी में और गहराई से मामले की तह तक जाने का दावा कर रही है।

इस केस का सामाजिक और कानूनी महत्व बहुत अधिक है। एक ओर यह दिखाता है कि बड़ी हस्तियों से जुड़े मामलों में दबाव-प्रचार का इस्तेमाल हो सकता है, तो दूसरी ओर यह न्याय व्यवस्था की मजबूती और पीड़ितों की सुरक्षा पर हमारे समाज की संवेदनशीलता को परखता है। इस बीच प्रशासन और पुलिस पर भी यह जिम्मेदारी है कि वह हर संवाद और हर तथ्य की निष्पक्ष जांच करें ताकि किसी को भय या दबाव में आकर अपनी बात नहीं लौटानी पड़े।

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