
तमिलनाडु के शिवगंगा जिले से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां मंदिर में तैनात एक युवा चौकीदार की पुलिस हिरासत में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। वायरल हुए वीडियो, चश्मदीद बयानों और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर आरोप है कि चार पुलिसकर्मियों ने युवक को बर्बरता से पीट-पीटकर मार डाला।
मृतक की पहचान 27 वर्षीय अजित कुमार के रूप में हुई है, जो मदापुरम कालीयम्मन मंदिर में चौकीदारी करता था। 27 जून को मंदिर से चोरी की घटना के सिलसिले में पुलिस ने अजित को उसके भाई नवीन और तीन अन्य लोगों के साथ हिरासत में लिया। पुलिस ने न तो एफआईआर दर्ज की, न ही कोई कानूनी प्रक्रिया अपनाई। परिजनों के मुताबिक, अगले दिन पुलिस ने फिर अजित को थाने बुलाया और पूछताछ के लिए गोशाला में ले जाकर घंटों पीटा।
अजित के भाई नवीन ने मीडिया को बताया कि उन्हें भी पुलिस ने पीटा, लेकिन अजित को बार-बार अलग स्थानों पर ले जाकर यातना दी गई। एक वायरल वीडियो में भी देखा गया कि पुलिसकर्मी युवक को बेरहमी से पीट रहे हैं। हालत बिगड़ने पर अजित को मदुरै के निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि युवक के शरीर पर कम से कम 18 गंभीर चोटें थीं—कंधे, पसलियां, टखने और चेहरे पर गहरे घाव पाए गए। कानों से खून निकलने के भी निशान मिले।
मामले ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर उबाल ला दिया है। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने स्वतः संज्ञान लिया और तमिलनाडु पुलिस से जवाब मांगा। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए पूछा, “क्या वह कोई आतंकवादी था?” अदालत ने यह भी कहा कि यह सामान्य हिरासत नहीं, बल्कि एक सुनियोजित अपराध जैसा प्रतीत होता है।
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस घटना को “अनुचित और अमानवीय” बताया और इसकी जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया। पांच पुलिसकर्मियों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, जबकि छह अन्य को निलंबित कर दिया गया है, जिनमें शिवगंगा जिले के पुलिस अधीक्षक भी शामिल हैं।
सरकार ने पीड़ित परिवार को 5 लाख रुपये मुआवज़ा, भाई नवीन को सरकारी नौकरी और आवासीय ज़मीन देने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से पीड़ित परिवार से माफ़ी भी मांगी।
घटना के बाद से पूरे राज्य में आक्रोश का माहौल है। सोशल मीडिया पर #JusticeForAjithKumar ट्रेंड कर रहा है, और कई सामाजिक संगठनों ने सड़कों पर उतरकर न्याय की मांग की है।
यह घटना न सिर्फ पुलिस सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि हिरासत में नागरिक अधिकारों की किस हद तक अनदेखी की जा सकती है। अब देश की निगाहें इस मामले में CBI जांच और न्यायिक प्रक्रिया पर टिकी हैं।