
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राजनीतिक परिदृश्य और अधिक जटिल हो गया है क्योंकि एक नए तीसरे गठबंधन की परिकल्पना ज़ोर पकड़ रही है। AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने घोषणा की है कि वह लगभग 35 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वहीं आज़ाद समाज पार्टी 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी और अपनी जनता पार्टी 4 सीटों पर मुकाबला करेगी। इस तरह, ये दल न केवल प्रतिष्ठा बनाएँगे बल्कि मौजूदा दो मुख़ों — NDA और महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) — के बीच अपना राजनीतिक प्रभाव दिखाने की जुझारू राह खोल रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तीसरे मोर्चे का गठन उन मतदाताओं को एक विकल्प देना चाहता है, जो न तो एनडीए की कट्टर नीतियों से संतुष्ट हैं, न महागठबंधन की राजनीति से। AIMIM, विशेष रूप से, सीमांचल और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपनी पकड़ को मज़बूत करना चाहता है। पहले ही उसने 32 सीटों की पहली सूची जारी की है और कहा है कि कुल 100 सीटों पर उतरने की योजना है, जिससे उसकी दहाड़ सियासी गलियारों में सुनाई दे रही है।
आज़ाद समाज पार्टी और अपनी जनता पार्टी जैसी पार्टियाँ भी इस गठबंधन की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका संभाल सकती हैं — ये दल स्थानीय स्तर पर अपनी जमीनी पकड़ रखते हैं और वोट बैंक को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इनकी भागीदारी इस तीसरे मोर्चे की मोबिलिटी और व्यापक स्वीकार्यता का परीक्षण होगी।
हालाँकि, इस गठबंधन को सफलता पाने के लिए कई चुनौतियाँ सामना करनी होंगी। सबसे बड़ी चुनौती होगी संसाधन, प्रत्याशी का चयन और वोट बैंक विभाजन। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही मजबूत संगठनात्मक मशीनरी के साथ चुनाव मैदान में हैं। तीसरा गठबंधन यदि वोट विभाजन को बढ़ाने में सफल हो गया, तो वह किसी क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभा सकता है, लेकिन गुटों को भी यह ध्यान रखना होगा कि वे “सामजिक तालीमेल” और “गठबंधन सामंजस्य” बनाए रखें।
राजनीतिक समीकरण इस तरह बदल रहे हैं कि अब मुख्यमंत्री पद की दिशा केवल दो तरफ़ा मुकाबले से बाहर निकल सकती है — तीसरे मोर्चे की भूमिका मायने रखेगी। यदि AIMIM-आज़ाद समाज पार्टी-अपनी जनता पार्टी समझदारी से हिस्सेदारी और रणनीति बनाएँ, तो यह गठबंधन बिहार की सत्ता समीकरणों में बड़ा उलटफेर ला सकता है।



