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मदीना में प्रेमानंद महाराज के लिए दुआ करने वाले युवक को मिली धमकियाँ

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उत्तर प्रदेश और पूरे देश में चर्चा का विषय बने मथुरा-वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज की तबीयत को लेकर एक अप्रत्याशित मोड़ तब आया जब मदीना (सऊदी अरब) में एक युवक ने उनके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ की। हालांकि इस नेक पहल के बाद वह युवक सोशल मीडिया पर धमकियों का शिकार हो गया है, जिससे धर्म और आस्था के बीच तालमेल की संवेदनशीलता फिर सामने आ गई है।

खबर के अनुसार, मदीना में रह रहे सुफियान इलाहाबादी नामक व्यक्ति ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि वह प्रेमानंद महाराज की कुशलता के लिए दुआ कर रहे हैं। यह वाकया हिंदू और मुस्लिम आस्था के बीच सकारात्मक संवाद का प्रतीक बन चुका था। लेकिन, इस कदम के बाद से सुफियान को सोशल मीडिया पर कुछ कट्टरपंथी लोगों द्वारा धमकी भरे संदेश भेजे जाने लगे हैं।

दरअसल, सऊदी धरती से इस तरह की दुआ देना न केवल धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण माना गया, बल्कि उसने यह दिखाया कि आस्था सीमाओं से परे एक साझा भावना हो सकती है। लेकिन जब किसी नेक इशारे के बाद धमकियों का दौर शुरू हो जाए, तो यह स्पष्ट संकेत है कि अभी भी ऐसे अक्स हैं जो सौहार्द और दृष्टिकोण की खुली अभिव्यक्ति को स्वीकार नहीं करना चाहते। सुफियान के समर्थन में सोशल मीडिया पर भी कई लोग खड़े हुए हैं, जिन्होंने उनके निर्णय की सराहना की और उन पर हो रही धमकियों की निंदा की है।

इस मामले पर ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी ने कहा है कि सुफियान द्वारा प्रेमानंद महाराज के लिए दुआ करना इस्लाम की रवानगी और मानवता की मिसाल है। उन्होंने यह भी कहा कि धमकियाँ देना इस्लाम के सिद्धांतों से बिल्कुल विपरीत है और इस तरह की कार्यवाहियाँ पूरी तरह अपमानजनक है।

संत प्रेमानंद महाराज की सेहत को लेकर पहले से ही चिंता व्याप्त है। उनके आश्रम ने मीडिया को बताया है कि महाराज की स्थिति स्थिर है और वे अपनी दिनचर्या जारी रख रहे हैं। हालांकि, उन्होंने अपनी प्रातःक्रम की पैदल यात्रा (पद यात्रा) को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया है।

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि जब धर्मों के बीच संवाद की गुंजाइश हो, तब भी कितनी चुनौतियाँ होती हैं। सुफियान की मंशा स्पष्ट रूप से सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण रही, लेकिन प्रतिक्रिया ने दिखाया कि सामाजिक, धार्मिक अस्थिरता और कट्टरपंथी मानसिकता अभी भी जड़ें जमाए बैठी है।

अब यह देखना महत्वपूर्ण है कि प्रशासन, धार्मिक संस्थाएँ और समाज इस घटना को कैसे लेते हैं — क्या वे धमकियों को रोकने और सुकुमार दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए आगे आएँगी, या यह घटना भाषा और आचरण में केवल एक विवाद के रूप में रह जाएगी।

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