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कनाडा-चीन वैज्ञानिकों ने विकसित की “यूनिवर्सल किडनी”

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किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplant) की दुनिया में एक ऐसी खोज हुई है जो लाखों मरीजों की तकलीफ को कम कर सकती है: कनाडा और चीन के वैज्ञानिकों ने मिलकर ऐसी “यूनिवर्सल किडनी” (universal kidney) विकसित की है, जिसे किसी भी रक्त समूह (blood group) के रोगी को प्रत्यारोपित किया जा सकता है। यह खोज इस मायने में महत्वपूर्ण है कि अब डोनर और रीसिपिएंट (recipient) के रक्त समूह के मिलान की बाधा को पार करना संभव हो सकता है।

परंपरागत प्रत्यारोपण पद्धतियों में, डोनर और मरीज का रक्त समूह (A, B, O, AB) मेल होना बहुत आवश्यक माना जाता है। यदि रक्त समूह मेल नहीं होते, तो शरीर नई किडनी को “अन्य” मानकर प्रतिरक्षा (immune) प्रतिक्रिया कर देता है और उसे रिजेक्ट कर सकता है। यह कारण है कि किडनी इंतजार सूची (waiting list) बहुत लंबी होती है, और कई मरीज इस बीच जान गंवा देते हैं।

वैज्ञानिकों ने इस समस्या को एक अभिनव दृष्टिकोण से हल करने का प्रयास किया — न कि सिर्फ मरीज के शरीर को अनुकूल बनाने की कोशिश करें, बल्कि डोनर की किडनी को ही “न्यूट्रल” रूप दे दें। इसके लिए उन्होंने विशेष एंजाइम (enzymes) विकसित किए हैं, जो किडनी की सतह पर मौजूद रक्त समूह-विशिष्ट एंटीजेन्स (sugar molecules / antigens) को हटाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि डोनर की किडनी A समूह की है, तो इस एंजाइम की मदद से उस A एंटीजेन को काट दिया जाता है और इसे किसी भी समूह के व्यक्ति के शरीर में स्वीकार्य — यानी लगभग “O टाइप जैसा” — बनाया जा सकता है।

हाल ही में इस तकनीक का एक मानव रूप में परीक्षण किया गया है। चीन में एक ब्रेन-डेड (brain-dead) व्यक्ति की सहमति से उस व्यक्ति के शरीर में इस “enzyme-converted” किडनी को प्रत्यारोपित किया गया। नए रूप से परिवर्तित किडनी ने दो दिन तक बिना स्पष्ट प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के काम किया — यानी खून को छानने, वेस्ट मेटेरियल निकालने जैसे कार्य सफलतापूर्वक किए। उन दो दिनों में ‘हाइपरएक्यूट’ (hyperacute) प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया नहीं हुई। तीसरे दिन किडनी में धीरे-धीरे कुछ रक्त समूह संकेत (A एंटीजेन) वापस आने लगे, जिससे हल्की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया हुई, लेकिन वह अपेक्षाकृत कम तीव्र थी।

इस प्रयोग ने यह संकेत दिया है कि यदि इस प्रणाली को और बेहतर बनाया जाए, तो आने वाले समय में डोनर रक्त समूह की बाधा को काफी हद तक खत्म करना संभव हो सकता है। यानी, किसी भी डोनर की किडनी — चाहे उसका रक्त समूह कोई भी हो — अधिकतम रोगियों के लिए उपलब्ध हो सकेगी। इससे इंतजार सूची कम होगी और कई जीव बच सकेंगे।

हालाँकि, अभी कई चुनौतियाँ बाकी हैं। एक चुनौती यह है कि किडनी में हटाये गए एंटीजेन्स समय के साथ फिर वापस आ सकते हैं, जैसा कि तीसरे दिन इस प्रयोग में हुआ। इसके अलावा, प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया, दीर्घकालिक सुरक्षा, दुष्प्रभाव, एंजाइम की स्थायित्व (stability), और मानवीय परीक्षणों की अनुमतियाँ (regulatory approvals) — ये सभी मुद्दे हैं जिन्हें पार करना होगा।

यह खोज जैव चिकित्सा (biomedical) विज्ञान और अंग प्रत्यारोपण (organ transplant) के क्षेत्र में एक मील का पत्थर मानी जा रही है। यदि यह सफल हो जाती है, तो किडनी प्रत्यारोपण के लिए डोनर खोजने की मुश्किल बहुत हद तक कम हो जाएगी और विश्व स्तर पर हजारों मरीजों को राहत मिलेगी।

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