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ब्रिटिशों के लिए भय का कारण बने वीर सावरकर

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक वीर सावरकर का जीवन संघर्ष और बलिदान की मिसाल है। उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागपुर गांव में हुआ था। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि ने उन्हें लंदन तक पहुँचाया, जहाँ उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सक्रिय रूप से काम किया।

सावरकर ने 1857 के विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम मानते हुए इस पर एक पुस्तक लिखी, जिससे ब्रिटिश सरकार में हलचल मच गई। उनकी पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूक किया और स्वतंत्रता की ललक को प्रज्वलित किया।

1911 में, सावरकर को नासिक षड्यंत्र मामले में दोषी ठहराया गया और उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की कुख्यात ‘सेलुलर जेल’ (जिसे ‘काला पानी’ के नाम से भी जाना जाता है) में भेजा गया। यहाँ कैदियों को अत्यंत कठोर श्रम और अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। सावरकर ने 13 वर्षों तक इन यातनाओं को सहन किया, लेकिन उनका संकल्प कभी कमजोर नहीं पड़ा।

काला पानी की सजा का उद्देश्य था कैदियों को सामाजिक बहिष्कार का सामना कराना, क्योंकि समुद्र पार करना हिंदू धर्म में ‘काला पानी’ के रूप में माना जाता था। इससे कैदियों को न केवल शारीरिक यातनाएँ दी जाती थीं, बल्कि उनका सामाजिक और धार्मिक बहिष्कार भी किया जाता था।

सावरकर ने काला पानी में रहते हुए भी अपनी लेखनी और विचारों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी। उनकी काव्य रचनाएँ, लेख और पुस्तकों ने भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित किया।

उनकी वीरता और संघर्ष की कहानी आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय रहेगा, और उनकी यादें हमेशा भारतीयों के दिलों में जीवित रहेंगी।

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