
मुरादाबाद में गर्ल्स मदरसे द्वारा वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांगने का आरोप
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के पाकबड़ा इलाके में स्थित एक लड़कियों के मदरसे पर 13 वर्ष की नाबालिग छात्रा से एडमिशन से पहले वर्जिनिटी (मेडिकल) टेस्ट या वर्जिनिटी सर्टिफिकेट की मांग करने का गंभीर आरोप सामने आया है। इस मामले ने न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि राज्य-स्तरीय सामाजिक-राजनीतिक चर्चा को भी जन्म दिया है।
शिकायकर्ता पिता ने बताया कि उनके अनुसार मदरसे ने केवल वर्जिनिटी सर्टिफिकेट की मांग ही नहीं की बल्कि 500 रुपये की वसूली भी की और टीसी (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) भी नहीं दी गई। इस स्थिति में नाबालिग की गरिमा, उसकी शिक्षा-प्राप्ति तथा उसकी सामाजिक सुरक्षा से जुड़े कई चिंताएँ उठ खड़ी हुई हैं।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए Zia ur Rehman Barq (सांसद तथा Samajwadi Party के नेता) ने कहा कि “ना हमारा मजहब ऐसी मांग करता है, ना कोई मदरसा ऐसी मांग करता है”। उन्होंने इस तरह की शर्तों को धर्म-सिद्ध और शिक्षा-सिद्ध दोनों तरह से अनुचित बताया है और कहा कि इसकी सच्चाई सामने आनी चाहिए।
प्रशासन स्तर पर भी इस मामले की जांच शुरू कर दी गई है। स्थानीय पुलिस एवं स्कूल-मद्रसा प्रबंधन से बात की जा रही है। हालांकि इस वक्त यह स्पष्ट नहीं है कि आरोपी मदरसे के खिलाफ कितनी कार्रवाई हो चुकी है या होगी।
इस घटना के कई पहलू हैं जिन्हें ध्यान देने की जरूरत है:
एक तो यह कि नाबालिग बच्चों के साथ इस तरह की चिकित्सा-मांग कैसे कानूनी और नैतिक रूप से रखी जा सकती है।
दूसरा यह कि शिक्षा-संस्थान में प्रवेश के समय इस तरह की शर्तें वसूली तथा टीसी न देने जैसी धमकियों के साथ जुड़ी हैं—जो शिक्षा-सुलभता एवं बाल-हक के सिद्धांतों से विरोधाभासी है।
तीसरा यह कि इस तरह का मामला समाज-धर्म एवं शिक्षा-संस्था की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है, साथ ही किशोरियों की सुरक्षा, सम्मान और विकास के अधिकार की पुष्टि करता है।
राजनीतिक रूप से भी मामला संवेदनशील हो गया है, क्योंकि सांसद बर्क ने इसे सार्वजनिक रूप से उठाया है और सोशल-मीडिया तथा मीडिया में चर्चा को आगे बढ़ा दिया है। इस तरह के कदम से प्रशासन-मंडल पर दबाव बढ़ेगा कि वे इस तरह की शिकायतों का शीघ्र, पारदर्शी और प्रभावी अध्ययन करें।
अंततः यह मामला सिर्फ एक मदरसे-प्रश्न तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह शिक्षा-नीति, बाल-सुरक्षा, सांस्कृतिक-सोशल मानदंड, एवं धार्मिक-संस्था-प्रबंधन के बीच जटिल इंटरेक्शन को उजागर करता है। इस घटना से यह भी संकेत मिलता है कि यदि शिक्षा-संस्थान, परिवार और प्रशासन द्वारा समय रहते जागरूकता एवं जवाबदेही नहीं रखी गई, तो बच्चों के अधिकारों, सामाजिक समानता एवं शिक्षा-अवसर की चुनौतियों का दायित्व बढ़ जाएगा।



