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नेपाल में नौ वामपंथी दलों का विलय, बनी ‘नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी

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नेपाल की राजधानी काठमांडू में बुधवार को एक ऐतिहासिक राजनीतिक घटना हुई जब देश की नौ प्रमुख वामपंथी पार्टियों ने अपना विलय कर एक नए रूप में अपनी राजनीतिक ताकत को संगठित किया। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (Nepali Communist Party) नाम से गठित यह नया राजनीतिक संगठन आगामी आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए अस्तित्व में आया है।

इस विलय में शामिल प्रमुख दलों में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) (CPN Maoist Centre) और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत समाजवादी) (CPN Unified Socialist) भी शामिल हैं। विलय की घोषणा भृकुटीमंडप में एक भव्य कार्यक्रम में की गई, जिसमें नए दल के नाम, चुनाव चिह्न (पाँच-सितारा) तथा विचार-धारा का खुलासा हुआ।

विलय को लेकर नेताओं ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य केवल संगठनात्मक एकता नहीं है, बल्कि व्यापक राष्ट्रीय संकटों—जैसे भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और युवा-विरोधी माहौल—का सामना करना है। विशेष रूप से देश में ‘जनरेशन-Z’ की सक्रियता और उनकी मांगों को ध्यान में रखते हुए यह रणनीति तैयार की गई है।

पार्टियों के विलय के पीछे यह राजनीतिक माहौल है कि नेपाल में अगला आम चुनाव मार्च 2026 में होना प्रस्तावित है। इस लिहाज़ से यह नया गठबंधन समय से पहले ही अपनी स्थिति और शक्ति को मजबूत करना चाहता है।

नए दल के दो प्रमुख चेहरे सामने आए हैं: पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहाल ‘प्रचण्ड’ को समन्वयक (Coordinator) तथा पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल को सह-समन्वयक (Co-coordinator) नामित किया गया है।

हालाँकि, इस विलय को पूर्ण एकरूपता नहीं मिली है। माओवादी केंद्र के एक धड़े ने इस निर्णय का विरोध किया है और उन्होंने अलग राजनीतिक अभियान शुरू कर दिया है, जिससे यह स्पष्ट हुआ है कि वामपंथी राजनीति में अभी भी आंतरिक मत-भेद कायम हैं।

विश्लेषकों के अनुसार, इस कदम से नेपाली राजनीति में दो-तरफा बदलाव देखने को मिल सकते हैं: पहली ओर, वामपंथी विचारधारा को पुनर्जीवित करने का प्रयास है; दूसरी ओर, यह चुनावी रणनीति है — नए गठबंधन के ज़रिए मतदाताओं और युवा-वर्ग पर प्रभाव बनाने की दिशा में यह आंदोलन है।

हालाँकि, इस तरह का बड़ा संगठनात्मक परिवर्तन चुनौतियाँ भी लेकर आता है। नए दल को अपनी विचारधारा, नेतृत्व, क्षेत्रीय संगठन और चुनावी रणनीति को जल्दी-से एक सूत्र में बांधना होगा। इसके साथ ही यह भी देखना होगा कि जनता एवं युवाओं में इसके प्रति विश्वास बनता है या नहीं।

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