
“सेना में जात-धर्म पूछना शर्म की बात है”: Amit Shah का Rahul Gandhi पर तीखा हमला
चुनावी माहौल में जब हर बयान-प्रचार मायने रखता है, उसी क्रम में Amit Shah ने Rahul Gandhi को लिए हुए एक कड़ा बयान जारी किया है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की पृष्ठभूमि में शाह ने राहुल गांधी के उस कथित बयान को उठाया है जिसमें उन्होंने कथित रूप से सेना के सैनिकों के जात-धर्म और धर्म को लेकर सवाल उठाए थे — और शाह का कहना है कि यह “शर्म की बात” है।
शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री एवं भाजपा-संगठन का मानना है कि देश की सेना-निर्धारित जिम्मेदारियों पर जात-धर्म का सवाल उठाना न सिर्फ गलत बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने राहुल गांधी को निर्देश देते हुए कहा कि अगर उन्होंने वास्तव में ऐसा सवाल पूछा है, तो उन्हें देश और सैनिकों से माफी मांगनी चाहिए। भाजपा के इस हमले के पीछे यह रणनीति साफ दिखती है–चुनावी समय में सैनिकों-से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को अपने पक्ष में मोड़ना।
शाह ने आगे कहा कि बिहार में इस तरह के बयान यह संकेत देते हैं कि विपक्षी दल देश-सेवा, सुरक्षा, और समावेशी भावनाओं को राजनीतिक ओलेख में बदल देना चाहते हैं। उन्होंने राहुल गांधी को यह “मजबूत संदेश” दिया कि भाजपा-जुड़ी सरकारें विकास-विकास की बात करती हैं, न कि सैनिकों-में विभाजन की। इस प्रकार शाह ने संवाद का मोर्चा जात-धर्म व सेना-सम्मान के बीच केंद्रित किया।
राजनीतिक विश्लेषक इस बयान को इस तरह देख रहे हैं कि यह भाजपा की कोशिश है कि वे विपक्ष को “राष्ट्र-विरोधी” या “दल-विशिष्ट” पूछताछ करते हुए दिखाएँ। बिहार जैसे राज्य में जहां सुरक्षा-बहिर्गमन, पलायन, बेरोजगारी जैसे मुद्दों के साथ ही जात-धर्म-प्रश्न हमेशा बने रहने वाले हैं, शाह का यह हमला ज्यादा व्यापक प्रचार रणनीति में फिट बैठ रहा है।
हालाँकि, विपक्ष ने इस पर पलटवार किया है। कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने कहा है कि राहुल गांधी ने सैनिकों को जात-धर्म के आधार पर देखा नहीं बल्कि देश-संघर्ष, सामाजिक समावेशन व प्रतिष्ठा के सवाल उठाए थे। उनका कहना है कि ऐसे आरोप लगाना कि उन्होंने सैनिकों-में विभाजन का सवाल उठाया, स्वयं सैनिक-समर्थक भाजपाई संवाद है।
इस पूरे घटनाक्रम का चुनावी परिणाम पर भी असर होगा क्यों कि बिहार की जनता संवेदनशील सामाजिक-प्रश्नों पर तेजी से प्रतिक्रिया करती रही है — कानून-व्यवस्था से लेकर सुरक्षा-बाह्य मामलों तक। शाह का यह बयान भाजपा समर्थकों में उत्साह जगाने के उद्देश्य से प्रतीत होता है, वहीं विपक्ष इसे “संवेदनशील मामला” बता कर बैकफुट पर लाना चाह रहा है।
अगले दिनों में यह देखना होगा कि क्या इस बयान से मतदान व्यवहार पर असर पड़ता है — क्या यह सैनिक-परिवारों, सुरक्षा-सेवाओं से जुड़े मतदाताओं, संवेदनशील वर्गों को भाजपा के पक्ष में खींच पाता है? या विपक्ष इसे “मनगढ़ंत आरोप” कह कर हवा में छोड़ देगा?



