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बांग्लादेश NSA खलिलुर रहमान ने अजीत डोभाल को दिल्ली में आमंत्रित किया

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बांग्लादेश के राष्ट्रीय सुरक्षा उपदेष्ट (NSA) डॉ. खलिलुर रहमान ने नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की और उन्हें औपचारिक रूप से ढाका आने का निमंत्रण दिया। यह संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण बैठक कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव (Colombo Security Conclave) की NSA-स्तरीय बैठक के सिलसिले में हुई और दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय सुरक्षा, सीमाई मुद्दे और क्षेत्रीय स्थिरता पर बातचीत की।

क्यों संवेदनशील है यह मिलन

यह मुलाकात विशेषकर इसलिए संवेदनशील मानी जा रही है क्योंकि हाल ही में बांग्लादेश की एक विशेष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 17–18 नवंबर 2025 को मानवता-विरोधी अपराधों के आरोप में मृत्यु-दंड दिया है। इसके बाद ढाका ने भारत से उनकी प्रत्यर्पण मांग दोहराई है, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ गया है। इन तमाम घटनाओं के बीच खलिलुर-डोभाल की यह बातचीत इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह दोनों देशों के शीर्ष सुरक्षा सलाहकारों के बीच पहली उच्च-स्तरीय इन-person बैठकों में से एक मानी जा रही है।

क्या कहा गया/क्या चर्चा हुई (जैसा कि रिपोर्ट्स में आया)

प्रारम्भिक मीडिया कवरेज के मुताबिक बैठक में दोनों NSA ने सीएससी के एजेंडे पर चर्चा की और द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को बरकरार रखने की सहमति पर भी रेखांकन किया गया। बांग्लादेशी पक्ष ने डोभाल को ढाका आने का निमंत्रण दिया — यह संकेत माना जा रहा है कि ढाका बातचीत के जरिए ऊष्मा को कम करना चाहता है और द्विपक्षीय चैनल खुले रखना चाहता है। रिपोर्टों में यह भी उल्लेख है कि दोनों पक्षों ने सीमापार सुरक्षा, आतंरिक उछाल (internal unrest) का प्रभाव और क्षेत्रीय न्यूनीकरण-रणनीतियों पर विचार-विमर्श किया।

भारत की स्थिति — प्रत्यर्पण पर क्या संभावना है

विशेषज्ञ और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का मानना है कि भारत तुरंत किसी भी प्रत्यर्पण का निर्णय राजनीतिक-कानूनी आधार पर करेगा और मृत्यु-दंड जैसी संवेदनशील-कानूनी परिस्थितियों में मानवीय और अंतरराष्ट्रीय क़ानून, घरेलू अभ्यास और नीतिगत विचार भारी भूमिका निभाते हैं। कुछ विश्लेषकों ने यह भी कहा है कि राजनीतिक लागत, घरेलू नीतिगत विचार और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण भारत के लिए तत्काल प्रत्यर्पण करना मुश्किल दिखता है। इनबॉक्स विश्लेषणों में यह भी नोट किया गया है कि द्विपक्षीय रिश्तों को टकराव से बचाने के लिए संवादात्मक चैनल बनाए रखना दोनों पक्षों की प्राथमिकता बनेगा।

कूटनीतिक और क्षेत्रीय निहितार्थ

  1. संवाद का रास्ता खुला रखना: ढाका द्वारा औपचारिक निमंत्रण और डोभाल-खलिलुर की व्यक्तिगत बैठक यह दर्शाती है कि दोनों पक्ष तनाव के बावजूद संवाद बनाए रखना चाहते हैं — जिससे सीमाई और सुरक्षा मामलों में तालमेल बना रहे।

  2. वन्दर्भ-निंदा व घरेलू राजनीति: बांग्लादेश में वर्तमान फैसले ने वहां की अंतरिम सरकार और जनता के बीच भावनात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न की है; यह प्रतिक्रिया भारत के लिए नीतिगत चुनौतियाँ पैदा कर सकती है।

  3. अंतरराष्ट्रीय दबाव व मानवाधिकार दृष्टिकोण: चूंकि मामले में मृत्यु-दंड जुड़ा है, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समुदाय और पड़ोसी देशों की प्रतिक्रिया दीर्घकालिक कूटनीतिक प्रभाव डाल सकती है।

आगे क्या उम्मीद रखें (संभावित परिदृश्य)

  • डिप्लोमैटिक बैक-चैनल सक्रिय रहेंगे: दोनों NSA-स्तर पर संवाद बनाकर रखेंगे ताकि सीमाई और सुरक्षा सहयोग प्रभावित न हो।

  • कानूनी प्रक्रियाओं और प्रत्यर्पण पर विचार-विमर्श: कोई भी औपचारिक प्रत्यर्पण तुरंत होने की संभावना कम है; इससे पहले कानूनी व राजनैतिक पहलुओं का गहन आकलन होगा।

  • क्षेत्रीय मंचों पर चर्चा: CSC जैसे क्षेत्रीय मंचों का उपयोग संवाद और संकट प्रबंधन के लिए बढ़ सकता है।

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