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मुज़फ्फरनगर दूल्हे ने दहेज़ में मिले ₹31 लाख लौटाए

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उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में 26 वर्षीय Awadhesh Rana नामक दूल्हे ने अपनी शादी के दौरान दहेज़ में दिए गए भारी रकम — ₹ 31 लाख — को ठुकरा कर सामाजिक भावना और आत्म-सम्मान का एक नया उदाहरण पेश किया। उन्होंने दूल्हे पक्ष के रूप में दहेज़ की इस रकम को हाथ जोड़कर मना कर दिया और विवाह में सिर्फ ₹ 1 को ‘शगुन’ के रूप में स्वीकार किया।

विवाह के दौरान जब दहेज़ की थाली मेज़ पर रखी गई और मुड़े हुए नोटों को देखकर आसपास के लोग स्तब्ध रह गए — लेकिन जब Awadhesh ने साफ शब्दों में कहा कि “यह पैसा दुल्हन पक्ष के पिता की मेहनत की कमाई है, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता” — तो माहौल अचानक बदल गया।

उनका यह फैसला न सिर्फ उनके रिश्तेदारों को बल्कि शादी में आए अन्य मेहमानों — और सोशल मीडिया पर देख रहे लोगों को भी प्रेरित कर गया। दूल्हे के इस कदम को समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश माना जा रहा है।


पृष्ठभूमि — क्यों खास है यह फैसला

  • दुल्हन, Aditi Singh, की शादी मुज़फ्फरनगर के नगवा-गांव निवासी Awadhesh Rana से हुई। Aditi के पिता कोविड-19 महामारी के दौरान मर चुके थे।

  • शादी तय होने के समय ही Awadhesh और उनके परिवार ने स्पष्ट कर दिया था कि वे दहेज़-मुक्त रिश्ता चाहते हैं — और यदि शादी होती है, तो सिर्फ “एक रुपये का रिश्ता” होगा।

  • लेकिन दुल्हन पक्ष ने तिलक या शादी की रस्मों के दौरान दहेज़ के रूप में ₹ 31 लाख लाने का फ़ैसला किया। जब यह राशि सामने आई, तो Awadhesh ने पूरा पैसा हाथ जोड़कर लौटा दिया और कहा कि उनके लिए दहेज़ नहीं, दुल्हन की साझेदारी मायने रखती है।


सामाजिक-संदेश: दहेज़ प्रथा के खिलाफ आवाज़

इस एक फैसले ने सिर्फ एक शादी को नहीं बदल दिया — बल्कि दहेज़ प्रथा जैसी समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी सामाजिक बुराई के खिलाफ ताकतवर संदेश भेजा है।

Awadhesh ने कहा कि “रिश्ता ₹ 1 से शुरू हुआ है, ₹ 1 पर ही खत्म होगा” — यानी प्यार, सम्मान और साझेदारी को पैसों पर नहीं तौला जाए।

उनके इस कदम को गांव-समुदाय, रिश्तेदारों और सोशल मीडिया पर जमकर सराहा जा रहा है। बहुत लोग इसे उन युवा-दंपतियों के लिए उदाहरण बता रहे हैं, जो अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी को पारंपरिक बुराइयों से मुक्त करना चाहते हैं।


क्यों है यह घटना अभी प्रासंगिक — बदलते समय का प्रतीक

यह घटना इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में दहेज़ प्रथा अब भी कई जगह आम है; दहेज़ की वजह से अनगिनत परिवारों को वित्तीय बोझ, सामाजिक दबाव, और यहां तक कि हिंसा का सामना करना पड़ता है।

ऐसे में एक शादी जहां दहेज़ को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया जाए — वह केवल व्यक्तिगत फैसला नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का संकेत हो सकता है।

Awadhesh जैसे युवाओं का यह रुख यह दिखाता है कि बदलती सोच और आगे बढ़ने की प्रवृत्ति अब मौजूद है — जहाँ शादी में रिश्ते, सम्मान और साझेदारी की अहमियत पैसों से अधिक समझी जा रही है।

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