
मार्च 2026 तक सात प्रक्षेपण, गगनयान का पहला मानवरहित मिशन प्रमुख
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अगले कुछ महीनों को अपने इतिहास की सबसे व्यस्त अवधि के तौर पर चिह्नित कर लिया है, जिसमें **मार्च 2026 तक कुल सात अंतरिक्ष मिशन किये जाने की योजना है। इस व्यापक प्रक्षेपण कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भारत के गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम का पहला मानवरहित मिशन है, जो इसरो की तकनीकी क्षमताओं और मानवरहित परीक्षण सफलता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
इन सात प्रक्षेपणों की सूची में न केवल गगनयान का मानवरहित परीक्षण शामिल है, बल्कि स्वदेशी इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम, क्वांटम डिस्ट्रीब्यूशन तकनीक तथा कई अन्य प्रगतिशील तकनीकों के प्रदर्शन और परीक्षण भी शामिल होंगे। यह योजना इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के मिलकर किये जा रहे व्यापक शोध एवं विकास कार्य का परिणाम है, जो देश को अंतरिक्ष अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे ले जाने का लक्ष्य रखता है।
गगनयान मिशन के पहले मानवरहित चरण में ‘व्योममित्रा’ नामक रोबोट को अंतरिक्ष यान में भेजा जाएगा, ताकि वास्तविक परिस्थितियों में मानव-युक्त उड़ान से पहले सभी महत्वपूर्ण प्रणालियों—जैसे एयरोडायनामिक प्रदर्शन, ऑर्बिटल मॉड्यूल की कार्यक्षमता, तथा क्रू मॉड्यूल की सुरक्षित वापसी प्रक्रिया—का परीक्षण किया जा सके। यह मिशन मानव अंतरिक्ष उड़ान की दिशा में एक निर्णायक परीक्षण माना जा रहा है और सफल होने पर यह भारत को अंतरिक्ष में मानव भेजने के करीब एक और कदम ले जाएगा।
इसरो ने इस योजना के तहत LVM-3 (एलवीएम-3) रॉकेट का भरपूर उपयोग करने का निर्णय लिया है, जो न सिर्फ गगनयान मिशनों के लिये उपयुक्त है, बल्कि भारी उपग्रहों और वैज्ञानिक पेलोड के प्रक्षेपण के लिये भी सक्षम है। इसरो की व्यावसायिक इकाई न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के साथ मिलकर यह मिशन अंतरराष्ट्रीय साझेदारों को प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करने में भी सक्षम होगा, जैसे कि अमेरिकी कंपनी के ब्लूबर्ड उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने का प्रोजेक्ट, जो देश की अंतरिक्ष व्यावसायिक गतिविधियों को भी व्यापक रूप से बढ़ावा देगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इन मिशनों का व्यावसायिक और वैज्ञानिक महत्व दोनों ही उच्च है। तकनीकी परीक्षणों के अलावा, इस तरह की उड़ानें भारत की अंतरिक्ष उपस्थिति को और मजबूत करेंगी तथा नौकरियों, उद्योग सहयोग और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान भागीदारी के लिये नई क्षमताओं का मार्ग प्रशस्त करेंगी। इसके साथ ही, देश के युवा वैज्ञानिक और इंजीनियर भी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की दिशा में खुद को और बेहतर ढंग से तैयार कर पाएंगे।



