अंबेडकरनगर
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद संभाग का एक जिला है।अंबेडकर नगर को बीएसपी का गढ़ माना जाता रहा है।तत्कालीन फैजाबाद जनपद को 1995 में विभक्त कर अंबेडकरनगर नाम से बने इस जनपद की पहचान बसपा के गढ़ के तौर पर दशकों से बनी है। हालांकि बदली हुई परिस्थितियों में बसपा से यह पहचान छिनती हुई नजर आ रही है।अंबेडकरनगर में 5 विधानसभा सीटें है, जिसमें दो बीजेपी के पास थी और तीन सपा के कब्जे में थी।अंबेडकरनगर जिले की कटेहरी विधानसभा सीट पर जातिगत आंकड़ों के कारण सबसे ज्यादा बसपा का कब्जा रहा है. इस विधानसभा में दलित मतदाताओं के साथ निषाद और राजभर मतों की संख्या ज्यादा है. इस वजह से बसपा 1993 से लेकर 2017 तक पांच बार चुनाव में जीत दर्ज की इस बार कटेहरी विधानसभा की सीट सपा की झोली में चली गई। बस सपा से निष्कासित लालजी वर्मा सपा में शामिल होने के पश्चात विधानसभा कटेहरी से जीत दर्ज कराई।
अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के रामअचल राजभर ने जीत सुनिश्चित की।अकबरपुर सीट पर पिछले छह चुनावों में बसपा ने पांच बार बाजी मारी है। बसपा के रामअचल राजभर पांच बार विधायक रहे, लेकिन इस बार वह सपा से चुनाव लड़े और जीत सुनिश्चित की।समाजवादी पार्टी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री राममूर्ति वर्मा को विधानसभा क्षेत्र 278-टांडा से प्रत्याशी घोषित किया था और टांडा विधानसभा क्षेत्र से राममूर्ति वर्मा विजई हुए।राममूर्ति वर्मा 2012 में अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव जीते थे। 2017 में बसपा के रामअचल राजभर से चुनाव हार गए थे।जलालपुर विधानसभा क्षेत्र से राकेश पांडे बसपा को छोड़कर साइकिल की सवारी कर लिए थे और समाजवादी पार्टी को जीत दिलाने में सफल रहे।सपा से विधायक बसपा से सांसद रह चुके हैं राकेश पांडेय।राकेश पांडेय पहली बार 2002 में सपा से चुनाव लड़कर जलालपुर से विधायक बने थे. वे 2007 में फिर समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 2009 लोकसभा चुनाव से पहले वे सपा छोड़कर बसपा की सवारी कर लिए और बसपा ने उन्हें टिकट दिया तो सांसद बन गये।2012 के विधानसभा चुनाव से पहले परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई आलापुर सीट इससे पूर्व जहांगीरगंज नाम से जानी जाती थी। यह सीट सभी प्रमुख पार्टियों के लिए खास रही है। पिछले चार विधानसभा चुनावों में जिस भी पार्टी ने यहां से जीत हासिल की, सरकार भी उसी ने बनाई। सन 2002 के चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती ने यहां से जीत हासिल कर मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि, उनके दो जगह से विधायक चुने जाने के नाते कुछ ही दिनों बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। त्रिभुवन दत्त लोकसभा चुनाव के बाद बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं। इससे पहले वह 2007 में आलापुर से विधायक बने थे।त्रिभुवन दत्त ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत कर अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की थी।मायावती के त्यागपत्र देने के बाद हुए उपचुनाव में त्रिभुवन दत्त को प्रत्याशी बनाया गया था।उपचुनाव में भी जीत दर्ज कर वह बसपा प्रमुख के बेहद करीब आ गये। सपा ने विधानसभा चुनाव 2022 में आलापुर विधानसभा क्षेत्र से विजई हुए।