
लखनऊ के सारोजिनी नगर में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया, जिसमें एक सदी के पार कर चुके बुजुर्ग जीवन और उनके सेवानिवृत्त मर्चेंट नेवी अधिकारी बेटे को ‘डिजिटल अरेस्ट’ नामक साइबर फ्रॉड का शिकार होना पड़ा।
पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, 20 अगस्त को 100 वर्षीय हर्देव सिंह को एक अज्ञात नंबर से कॉल आया, जिसमें खुद को “सीबीआई का आलोक सिंह” बताकर कहा गया कि उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का मानहानि का केस दर्ज है और उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका है। फ्रॉडर्स ने व्हाट्सएप पर “डिजिटल अरेस्ट” की फर्जी सूचना भेजी और वर्चुअल हिरासत में होने का दावा किया। इस डर से बुजुर्ग ने बैंक संबंधी जानकारी साझा कर दी।
उनके बेटे, सूरिंदर पाल सिंह (70 वर्ष), जो एक पूर्व मर्चेंट नेवी अधिकारी हैं, जब घर लौटकर इस स्थिति से अवगत हुए, तो भयभीत हो गए। उन्होंने अगस्त 21 से 26 के बीच अलग-अलग खातों में RTGS के माध्यम से कुल 1.29 करोड़ रुपये स्थानांतरित कर दिए। इसमें 32 लाख रुपये भुवनेश्वर की फर्म Ujahs Enterprise को, 45 लाख रुपये गोवा के एक खाते में और 52 लाख रुपये जलगांव की Shree Nath Traders को भेजे गए—सभी राशि ‘वेरिफिकेशन’ के बहाने भेजी गई।
पैसे ट्रांसफर होने के बाद जब कोई रिफंड या पुष्टि नहीं हुई, तब उन्हें धोखाधड़ी का अहसास हुआ और उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस अब इस घटना की विवेचना कर रही है, साथ ही ट्रांजेक्शनों और संबंधित खातों का पता लगाया जा रहा है।
यह घटना डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड का एक बड़ा उदाहरण है, जिसमें बुजुर्गों को साइबर अपराधियों द्वारा सरकारी संस्थाओं के नाम पर डराकर आर्थिक रूप से निशाना बनाया जाता है। इससे पहले भी कई वृद्ध और सेवानिवृत्त नागरिक इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार हो चुके हैं।